रांची : झारखंड विधानसभा के सत्र में हंगामा तो होता गया. लेकिन इसी हंगामा के बीच तीन अहम विधेयक पारित हुआ. इसमें अहम विधेयक नियोजन निधेयक 2021 था, जिसको ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. इसके अलावा झारखंड नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021 को भी पारित किया गया. झारखंड माल सेवा कर संशोधन विधेयक को भी इसको पारित कर दिया गया. (नीचे पूरी खबर पढ़ें)
क्या है झारखंड नियोजन विधेयक 2021
नियोजन विधेयक के तहत 40 हजार रुपये तक की नौकरी निजी क्षेत्रों में भी स्थानीय को देना होगा, जिसके लिए 75 फीसदी आरक्षण पारित कर दिया गया. इसका अनुपालन नहीं करने पर कंपनियों को पांच लाख रुपये का नियम लगा दिया गया. इस नियुक्ति प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए एक जांच समिति रहेगी जबकि तीन माह के भीतर सभी संस्थाओं को पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होगा. नियुक्ति में तय किया गया है कि विस्थापितों और समाज के सारे वर्गों का भी ध्यान देना होगा. स्थानीय नौकरी पाने वालों को रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी किया गया है. जो रजिस्ट्रेशन नहीं करायेगा, उसको इस अधिनियम का लाभ नहीं मिलेगा. इस मामले की जांच एसडीओ रैंक के पदाधिकारी के स्तर पर ही होगा. नियुक्ति पर नजर रखने के लिए अभिहित पदाधिकारी यानी डेजिगनेटेड ऑफिसर की अध्यक्षता में गठित समिति में सदस्य के रुप में स्थानीय विधायक या नामित प्रतिनिधि, उपविकास आयुक्त, संबंधित अंचलों के सीओ, श्रम अधीक्षक, जिला नियोजन पदाधिकारी समिति के सदस्य होंगे. नियुक्त के मामले में जिलास्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट की समीक्षा अभिहित पदाधिकारी करेंगे. इसमें कौशल और योग्यता के आधार पर नियोक्ता द्वारा स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिए नियोक्ता द्वारा किये गये प्रयास का मूल्यांकन किया जायेगा. मूल्यांकन के आधार पर नियोक्ता के दावे को रद्द या स्वीकार किया जायेगा. स्थानीय उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने के लिए नियोक्ता को निर्देश दिया जा सकेगा. नियोक्ता द्वारा पेश किये गये प्रतिवेदन की सत्यता की जांच के लिए संबंधित दस्तावेज की मांग की जा सकेगी. नियोक्ता को अभिहित पदाधिकारी द्वारा पारित किसी आदेश के खिलाफ अपील करने का अधिकार होगा. अपीलीय पदाधिकारी 60 दिनों के अंदर अपील का निष्पादन करेंगे. अधिनियम की धारा (3) का उल्लंघन करने यानी 40 हजार रुपये वेतन पाने वाले कर्मचारियों का पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं कराने वाले नियोक्ता पर 25 हजार से एक लाख रुपये तक का दंड लगाया जा सकेगा. उल्लंघन प्रमाणित होने के बाद भी उल्लंघन करना जारी रहने की स्थिति में दो हजार रुपये प्रति दिन की दर से दंड लगाया जा सकेगा. अधिनियम की धारा चार यानी 75 प्रतिशत आरक्षण नहीं देने पर नियोक्ता पर 50 हजार से दो लाख रुपये तक दंड लगाया जायेगा. अगर आरोप सही साबित हुआ तो प्रतिदिन पांच हजार रुपये की दर से दंड लगाया जा सकेगा. नियोक्ता द्वारा किसी मामले में गलत या झूठा प्रतिवेदन पर 50 हजार रुपये दंड लगाया जा सकेगा. अधिनियम में निहित प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में दूसरी बार दोषी साबित होनेवाले नियोक्ता पर दो लाख से पांच लाख रुपये तक का दंड लगाया जा सकेगा. दंड की रकम अदा नहीं करने पर प्राधिकृत पदाधिकारी द्वारा एक प्रमाण पत्र तैयार किया जायेगा. इसमें नियोक्ता पर लगाये गये दंड का उल्लेख होगा. इस प्रमाण पत्र को वैसे जिला के उपायुक्त को भेजा जायेगा जहां वह व्यापार करता हो. उपायुक्त के स्तर से राशि की वसूली के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जायेगी. राज्य सरकार ने बजट सत्र के दौरान ही निजी क्षेत्रों में स्थानीय उम्मीदवारों को निजी क्षेत्रों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित विधेयक पेश किया था. राजनीतिक दलों की मांग पर इसे प्रवर समिति को सौंप दिया गया. श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता इस समिति के सभापति थे. समिति में सदस्य के रूप में रामदास सोरेन, मथुरा प्रसाद महतो, रामचंद्र चंद्रवंशी, विनोद कुमार सिंह और प्रदीप यादव को शामिल किया गया. समिति ने विधेयक के मूल प्रस्ताव में कई संशोधन किये. समिति ने 30 हजार रुपये के बदले 40 हजार रुपये तक की नौकरियों में आरक्षण लागू करने का प्रावधान किया. इसके अलावा अधिनियम में निहित प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले नियुक्तों के लिए प्रस्तावित दंड की सीमा बढ़ा दी. (नीचे पूरी खबर पढ़ें)
झारखंड नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021 को भी किया गया पारित
झारखंड के नगर निकायों में मेयर का चुनाव दलीय आधार पर नहीं होगा. वहीं डिप्टी मेयर व उपाध्यक्षो को चुने गये पार्षद अपने में से एक को निर्वाचित कर चुन सकेंगे. झारखंड विधानसभा में बुधवार को इस संबंध में झारखंड नगरपालिका संशोधन अधिनियम 2021 पेश किया गया, जिसको पारित कर दिया गया. इस अधिनियम के अनुसार राज्य सरकार के पास मेयर और अध्यक्ष को हटाने की भी शक्ति राज्य सरकार को मिल गयी है. इसके तहत यदि राज्य सरकार के मत में मेयर या अध्यक्ष परिषद की लगातार तीन से अधिक बैठकों में बिना पर्याप्त कारण की अनुपस्थित रहने अथवा जानबूझकर इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों एवं कर्तव्यों को करने से उपेक्षा करने या इंकार करने अथवा अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कदाचार का दोषी पाये जाने या अपने कर्तव्यों के निर्वहन में शारीरिक या मानसिक तौर पर अक्षम होने या किसी अपराधिक मामले का अभियुक्त होने की जानकारी होती है तो मेयर या अध्यक्ष को जवाब देने के उचित अवसर देते हुए हटाया जा सकेगा. इस अधिनियम के तहत प्रापर्टी टैक्स अब सर्किल रेट पर तय होगा. किसी अंचल में जमीन, फ्लैट आदि की कीमत के अनुसार प्रोपर्टी टैक्स वसूला जायेगा. विभाग इसके लिए अलग से नियमावली बनायेगी.