जमशेदपुर / सरायकेला / चाईबासा : कोविड-19 के मद्देनजर तमाम प्रतिबंध के बीच जमशेदपुर, घाटशिला, चाकुलिया, बहरागोड़ा, पोटका, पटमदा, डुमरिया, सरायकेला, खरसावां, राजनगर, चांडिल, ईचागढ़, कुचाई, चाईबासा, नोवामुंडी, किरूबुरू, जगन्नाथपुर, चक्रधरपुर समेत पूरे कोल्हान में शनिवार को पूरे हर्षोल्लास के साथ दिवाली मनायी गयी. साथ ही रात्रि बेला में श्रद्धा व भक्तिभाव के साथ काली पूजा की गयी. दीपावली पर लोगों ने हर वर्ष की तरह पूजा-अर्चना की और मिठाइयों का आदान-प्रदान किया. कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए अधिकतर लोगों ने संदेशों के जरिये ही एक दूसरे को दीपावली की बधाई दी. इसके अलावा लोग सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए नज आये. हालांकि इस वर्ष ग्रीन पटाखे ही फोड़ने की अनुमति थी और पटाखों की बिक्री को लेकर जिला प्रशासन काफी सख्त था, इस कारण पिछले वर्षों की तुलना में इस वर्ष पटाखों की कम दुकानें सजीं. वहीं पटाखों की आसमान छूती कीमतों के कारण इस वर्ष कम पटाखे जलाये गये. लेकिन त्योहार को लेकर लोगों में उत्साह कम नहीं था. इस बार भी लोगों ने दीपावली के मद्देनजर घरों की साफ-सफाई के अलावा मिनी लाइट व दीयी-मोमबत्ती से प्रकाशित किया और पूजा-अर्चना कर एक दूसरे को दीपावली की बधाई दी.
चाकुलिया में दिखा कोरोना का असर, दीपक के स्थान पर लगे लाइट
दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के कारण लोगों की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ा है. इसका असर इस बार दीपावली पर्व पर साफ देखने को मिला है. इस वर्ष धनतेरस पर भी लोगों में समान की खरीददारी करने में उत्साह देखने को नहीं देखा गया. वहीं दीपावली में ग्रामीण हर वर्ष अपने-अपने घरों में दीपक जलाते थे, दीपक की रोशनी की जगह इस वर्ष अधिकांश घरों में इलेक्ट्रॉनिक लाइट देखे गये. ग्रामीणों ने जरूरत के अनुसार ही दीपक जलाये और घरों की सजावट करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक लाइट का ही उपयोग किया.
भैया दूज या गोधन कल
दीपावली के तीसरे दिन यानी भैया दूज पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है. यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं. साथ ही भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है. भैया दूज का उत्सव पूरे भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि इस पर्व को मनाने की विधि हर जगह एक जैसी नहीं है। बिहार व उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र में इस पर्व को गोधन के नाम से जाना जाता है. महिलाएं गोबर से गोधन बना कर परंपरागत गीत गाते हुए उसे कूटती हैं. वहीं उत्तर भारत में जहां यह चलन है कि इस दिन बहनें भाई को अक्षत व तिलक लगाकर नारियल देती हैं वहीं पूर्वी भारत में बहनें शंखनाद के बाद भाई को तिलक लगाती हैं और भेंट स्वरूप कुछ उपहार देती हैं.