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Jamshedpur Vindhyavasini temple : जुगसलाई में श्रीश्री विंध्यवासिनी मंदिर की मनी 24वीं वर्षगांठ, भव्य रूप से की गयी मां की पूजा-अर्चना, बच्चों ने केक काटकर मनाया माता का वर्षगांठ

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जमशेदपुर : जमशेदपुर के जुगसलाई के एमई स्कूल रोड स्थित श्रीश्री विंध्यवासिनी मंदिर की 24वीं वर्षगांठ शनिवार को विधि-विधान के साथ मनायी गयी. इस अवसर पर पूरे मंदिर को फूल-माला आदि से भव्य तरीके से सजाया गया था, वहीं मां विंध्यवासिनी की मनोहारी प्रतिमा का भव्य श्रृंगार किया गया. सुबह वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा-अर्चना की गयी. तत्पश्चात हवन व आरती की गयी. वहीं बच्चों ने माता का वर्षगांठ केट काटकर मनाया. (नीचे भी पढ़ें और देखें वीडियो)

मां को प्रिय है पान, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए पान का भोग लगाया जाता है. इसके साथ ही प्रसाद के रूप में मां को जलेबी, मिठाइ, फल भी चढ़ाया गया. मां विंध्यवासिनी की प्रतिमा अत्यंत ही मनोहारी है. जो श्रद्धांलुओं के बीच आस्था का प्रतिक है. जिसके दर्शन मात्र से ही अलौकिक अनुभूति होने लगती है. (नीचे भी पढ़ें)

मंदिर में मां विंध्यवासिनी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएं हैं. अपने स्थापना काल से ही यह मंदिर लोक आस्था का केंद्र रहा है. मंदिर के सामने से आने-जानेवाले सैकड़ों लोग हर दिन यहां शीष नवाते हैं. (नीचे भी पढ़ें)

मां को प्रिय है पान, प्रसन्न करने को लगता है पान का भोग : मंदिर में मां विंध्यवासिनी को प्रसन्न करने के लिए मीठा पान का भोग चढ़ाया जाता है. मंदिर के संचालकों ने बताया कि मां को पान का विशेष भोग अर्पित किया जाता है. इसके लिए निर्धारित पान विक्रेता के यहां से ही पान लाया जाता है, जो वर्षगांठ के साथ दोनों नवरात्र में मां को अर्पित किया जाता है. इस दौरान नवरात्र के समय कलश स्थापना के दिन से ही 21 पान का भोग लगा कर शुरुआत की जाती है, जिसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जाती है. महानवमी के दिन मां को 101 पान का भोग अर्पित किया जाता है. पान भोग श्रद्धालु काफी श्रद्धा के साथ ग्रहण करते हैं, वहीं महानवमी को पूर्णाहुति के साथ ही प्रसाद वितरण किया जाता है. इसके साथ ही दोपहर में प्रसाद के रूप में खिचड़ी का मां को अर्पित किया जाता है. जिसे भोग के रूप में सभी भक्तों के बीच वितरण किया जाता है. इस आयोजन में पूरे साल अग्रवाल परिवार के सभी सदस्य सक्रिय भूमिका निभाते हैं. (नीचे भी पढ़ें)

स्व दीनानाथ अग्रवाल ने की थी मंदिर की स्थापना : यहां 29 जनवरी 1999 को समाजसेवी स्व दीनानाथ अग्रवाल ने इस भव्य मंदिर की स्थापना की थी. जयपुर से मां की प्रतिमा ले आकर यहां प्रतिष्ठापित की गयी थी. मंदिर में मां विंध्यवासिनी की मनोहारी प्रतिमा तो है ही, इस मंदिर में अष्टभुजी दुर्गा माता, मां काली के अलावा भैरव बाबा की भी प्रतिमा प्रतिष्ठापित है. वहीं द्वार पर सिद्धि विनायक गणेश जी विराजमान हैं. मंदिर के गुंबद में छोटे-छोटे चार मंदिर हैं, जहां भगवान शंकर, भगवान श्रीकृष्ण, श्रीगणेश जी एवं हनुमान जी विराजमान हैं. गुंबद की चोटी पर चार शेर कलश की रक्षा करते देखे जा सकते हैं. वहीं बगल में सितेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है. दोनों मंदिर का संचालन स्व दीनानाथ अग्रवाल के ज्येष्ठ पुत्र सुनील कुमार अग्रवाल व कनिष्ठ पुत्र सुशील कुमार अग्रवाल के द्वारा किया जाता है. साथ ही दोनों भाइयों का पूरा परिवार मां विंध्यवासिनी की सेवा में जुटा रहता है. यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए हर दिन सुबह व शाम निर्धारित समय से खुलता है. यहां दर्शन करने के पश्चात श्रद्धालु बगल में स्थित सितेश्वर महादेव मंदिर में भी दर्शन को जाते हैं. (नीचे भी पढ़ें)

स्व दीनानाथ अग्रवाल के परिजनों द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती है. इस आयोजन में सुनील अग्रवाल, सुशील अग्रवाल, पंकज अग्रवाल, प्रतीक अग्रवाल, नितिन अग्रवाल समेत अग्रवाल परिवार के सभी सदस्यों की सराहनीय भूमिका रही.

… तब कारीगरों को मिली थी गलती की सजा: मंदिर का निर्माण बलरामपुर (पुरुलिया) के बाबू मिस्त्री व उनके कुशल कारीगरों के द्वारा कराया गया है. मंदिर के निर्माण के क्रम में कारीगरों ने गलती की थी, जिसकी उन्हें सजा भुगतनी पड़ी थी. बताया जाता है कि निर्माण के दौरान कारीगरों ने एक दिन मांसाहारी भोजन किया. उसके बाद निर्माणाधीन मंदिर में आकर सो गये. देर रात उन्हें पायल की आवाज सुनाई देने लगी. उस पर उन्होंने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन बाद में उन्होंने ऐसा महसूस किया जैसे उन्हें कोई चांटे मार रहा है. इसके बाद जैसे किसी ने चेतावनी भी दी कि आइंदा मंदिर में मांसाहार कर के न आयें. इसके बाद कारीगर काफी डर गये. किसी तरह उन्होंने रात बितायी. उसके बाद सुबह होते ही मंदिर का निर्माण करवा रहे अग्रवाल परिवार को इसकी जानकारी दी. इसके साथ कारीगरों ने मंदिर में मांसाहार न करके आने की ठान ली.

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