रांची : झारखंड का सम्मेद शिखर इन दिनों लगातार विवाद में रहा है. इसका मुख्य कारण सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने की बात कही गयी थी. जिसके लिए जैन समाज के लोग हफ्तों से सड़कों पर अनशन कर रहे थे. सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल बनाने को लेकर सिर्फ झारखंड को ही नहीं बल्कि दिल्ली, जयपुर और भोपाल में भी प्रदर्शन हो रहा था. इसी अनशन में जयपुर के अनशन पर बैठे जैन संत का निधन हो गया था. इस स्थल की खासियत यह है कि 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति यही से की थी. मोक्ष प्राप्ति के कारण ही इस तीर्थस्थल को शिरोमणि तीर्थस्थल और सहस्त्र सिद्धि स्थल भी कहा जाता है. कहा जाता है कि किसी अन्य तीर्थस्थलों पर जाकर उन्हें ध्यान लगाना पड़ता है. परंतु सम्मेद शिखर जी में वे अपने आप ध्यान मग्न हो जाते है. मानयता यह भी है कि यहां वंदना करने से नर्क से मुक्ति मिलती है. (नीचे भी पढ़ें)
क्यों प्रचलित है सम्मेद शिखर-
झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन में एक पारसनाथ पहाड़ स्थित है. उस पहाड़ को झारखंड का सबसे ऊंचा पहाड़ी भी कहा जाता है. जिसकी ऊंचाई 9.6 किलोमीटर है. इस पहाड़ की तलहटी से 20 तीर्थंकरों के मंदिर भी है, जिसमें 23 भगवानों के अलग-अलग मंदिर बनाए गए है. पहाड़ी की तलहटी पर शिखर पॉइंट होती है, जहां से पहाड़ की यात्रा शुरू की जाती है. इसकी लगभग डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद सबसे पहले कली कुंड मंदिर आता है. फिर चोपड़ा कुंड मंदिर, जल कुंड मंदिर समेत कई मंदिर है. कहा जाता है कि चोपड़ा कुंड पहाड़ के आठ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद आता है. वहीं चोपड़ा कुंड में दिगंबर समाज के लिए पहला पड़ाव है. इसके पश्चात एक किलोमीटर की चढ़ाई के बाद तीर्थकारों के मंदिर आते है. इन मंदिरों तक पहुंचा बहुत ही कठीन होता है. इनके पथों पर काफी उतार-चढ़ाव है. (नीचे भी पढ़ें)
जल कुंड मंदिर में स्थापित है तीर्थंकरों की प्रतिमा- वहां के जल कुंड मंदिर में 10 वर्ष से पूजा कर रहे पंडित बताते है कि 20 मंदिरों के बीच जल मंदिर बनाया गया है. जहां जैन धर्म के सभी 24 मूर्तियां स्थापित है. (नीचे भी पढ़ें)
केवल यहीं नहीं मधुबन के शिखर की तलहटी पर लगभग 40 धर्मशालाएं बनाई गयी है. जिसमें से इन सभी धर्मशालाओं में 40 मंदिर भी बनाए गए है. ताकि यात्री इसकी चढ़ाई करने से पहले यहां की धर्मशालाओं में बने मंदिर में पूजा अर्चना करे लें. वहां रहने वाले पंडित बताते है कि हर साल यहां दो लाख से अधिक यात्री देश-विदेश से आते है, जो तीन दिन तक यहां रुकते है. (नीचे भी पढ़ें)
पहाड़ की चढ़ाई बेहद कठिन-
वहां यात्रा करने वाले श्रद्धांलु बताते है कि इस पहाड़ की चढ़ाई बेहद ही कठिन होती है. इसमें जैन समाज के लोग पवित्रता को भी ध्यान में रखते है. पहाड़ की यात्रा के दौरान जैन श्रद्धांलु एक बूंद भी पानी या खाना का सेवन नहीं करते है. चढ़ाई पूरी करने और पूजा करने के बाद ही जैन श्रद्धांलु अन्न जल ग्रहण करते है.