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navratra-special-नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ होगी मां शैलपुत्री की पूजा, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त व विधि

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शार्प भारत डेस्कः शारदीय नवरात्र का पर्व कल यानी गुरुवार से प्रारंभ हो रहा है. भारत वर्ष में नवरात्र पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है. नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ रूपो की पूजा की जाती है. इनमें से प्रथम देवी है मां शैलपुत्री है.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 7 अक्टूबर यानी गुरुवार की सुबह 6 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 7 मिनट तक और अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 38 मिनट के बीच है. जो लोग इस शुभ योग में कलश स्थापना न कर पाएं, वे दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक लाभ का चौघड़िया में और 1 बजकर 42 मिनट से शाम 3 बजकर 9 मिनट तक अमृत के चौघड़िया में कलश-पूजन कर सकते हैं. (नीचे भी पढ़ें)

कलश स्थापना की सामग्री
कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री में सात प्रकार के अनाज, चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन, मिट्टी, कलश, गंगाजल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, इलाइची, लौंग, नारियल, लाल सूत्र, मौली, कपूर, रोली, अक्षत, लाल वस्त्र व पुष्प की जरूरत होती है.
ऐसे करे कलश स्थापना-
सुबह स्नान करके मां दुर्गा, भगवान गणेश की मूर्ति के साथ कलश स्थापना करें. वहीं कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें. कलश स्थापना के समय अपने पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा घर के आंगन से पूर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज रखें.संभव हो, तो नदी की रेत रखें. फिर जौ भी डालें. इसके उपरांत कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, रुपया, पुष्पादि. फिर ‘ॐ भूम्यै नमः’ कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित रेत के ऊपर स्थापित करें. अब कलश में थोड़ा और जल या गंगाजल डालते हुए ‘ॐ वरुणाय नमः’ कहें और जल से भर दे. इसके बाद आम का पल्लव कलश के ऊपर रखें. वहीं कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें. अब ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रख दे.
ऐसे ले संकल्प-
पूजा व कलश स्थापना के बाद संकल्प लिया जाता है. इस दैरान अपने हाथों में हल्दी, अक्षत पुष्प लेकर इच्छित संकल्प लें. इसके बाद ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्र जनार्दनः! दीपो हरतु मे पापं पूजा दीप नमोस्तु ते. मंत्र का जाप करते दीप पूजन करें. कलश पूजन के बाद नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे!’ से सभी पूजन सामग्री अर्पण करते हुए मां शैलपुत्री की पूजा करें. (नीचे भी पढ़ें)

शैलपुत्री की कथा-
काशी के अलईपुर में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है. इस दिन पूजा अर्चना करने से भक्तों की हर मुरादे पूरी हो जाती है. मां शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया. इस दौरान उन्होंने यज्ञ में सम्मिलित होने के सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा, लेकिन भगवान शिव व माता पार्वती को यज्ञ में सम्मिलित होने का निमंत्रण नहीं दिया. सती को अच्छी तरह पता था कि उनके पिता उन्हें निमंत्रण अवश्य देंगे परन्तु उन्हें निमंत्रण नहीं मिला. निमंत्रण नहीं मिलने के बावजूद सती अपने पिता दक्ष के यहां यज्ञ में जाना चाहती थीं, वे जाने के लिए बेहद उत्साहित थीं. शिव जी के लाख मना करने के बावजूद सती जिद करती रहीं. अंत में भगवान शिव को सती की बात माननी पड़ी और उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. सती जब अपने पिता के यहां पहुंची तो देखा कि उनके साथ कोई भी आदर-प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है. केवल उनकी माता ही थीं जिन्होंने उनसे ठीक से बात की अन्यथा यज्ञ में मौजूद हर कोई उन्हें देख मुंह फेर रहा था. केवल यही नहीं, उनके पिता दक्ष ने भी उनसे ठीक से बर्ताव नहीं किया. सती को अपना और अपने पति का अपमान देखा नहीं गया. उन्होंने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर प्राण त्याग दिया. भगवान शिव को जब इस बात का पता तो वे बेहद दुखी हो गये. गुस्से में उन्होंने यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. मान्यता है कि सती ने हिमालय के यहां एक बार पुनः जन्म लिया, जिस कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. (नीचे भी पढ़ें)

वाराणसी में है प्राचीन मंदिर-
मान्यता के अनुसार मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया था और उनका नाम शैलपुत्री रखा गया. कहा जाता है एक बार मां पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गयी थी. जिसके बाद भगवान शिव उन्हें मनाने के लिए आये थे. उन्होंने शिव से आग्रह किया कि उन्हें यह स्थान बेहद प्रिय है, वे इस स्थान को छोड़ कर जाना नहीं चाहतीं. तभी से काशी में माता विराजमान हैं. माता शैलपुत्री की सवारी नंदी नामक वृषभ हैं. उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है.
वैवाहिक जीवन के कष्टों से मिलती है मुक्ति-
वाराणसी में प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा के लिए विवाहित महिलाओं का तांता लगा होता है. मान्यता अनुसार इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है.

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