Jamshedpur : वीमेंस कॉलेज द्वारा प्रकाशित पीयर रिव्यूड द्विभाषी व वार्षिक शोध पत्रिका गाँधी समग्र का शुक्रवार को झारखण्ड की राज्यपाल सह राज्य-विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति महोदया द्रौपदी मुर्मू ने ऑनलाइन विमोचन किया। विमोचन के उपरांत महामहिम ने अपने अभिभाषण में कॉलेज और संपादक मंडल को शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी समस्त मानव जाति के लिए ‘कथनी और करनी’ में एकता के आदर्श व्यक्तित्व हैं। उनकी खादी भी एक विचार है, उनकी लाठी भी एक विचार है। वस्त्र और विचार महात्मा गाँधी के लिए शरीर और आत्मा की तरह हैं। शरीर की शोभा आत्मा की पवित्रता पर ही निर्भर करती है। गाँधी जी शतशः इस पवित्रता की प्रतिमूर्ति हैं।
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सादा जीवन और उच्च जीवन मूल्यों के प्रतीक पुरुष हैं महात्मा गाँधी। जैसा वे सोचते थे, वैसा ही वे कहते थे, और जैसा वे सोचते और कहते थे, वैसा ही वे करते थे। उनका मानना था कि वाणी की अपेक्षा व्यवहार द्वारा दी गई शिक्षा ज्यादा प्रभावशाली होती है। हमें सबसे पहले आत्मसुधार करना चाहिए, तभी समाज और राष्ट्र का सुधार संभव हो पाएगा। यह सिर्फ स्मरण करने या दुहराने की चीज नहीं है, आत्मसात करने की चीज है। आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प उनके व्यक्तित्व के अनिवार्य अंग थे। यह उनका आत्मविश्वास ही था कि ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सत्याग्रह और असहयोग जैसी सकारात्मक प्रतिरोधी गतिविधियों के माध्यम से एक शक्तिशाली वैचारिक दर्शन विकसित कर सके और विश्व के पटल पर भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित किया। उनका मानना था कि सत्य और अहिंसा विश्व मानवता के कल्याण के लिए आवश्यक तत्त्व है। हमेशा सत्य के साथ खड़ा रहना और सत्य के लिए अहिंसक तरीके से आजीवन संकल्पबद्ध रहना ही जीवन की सही दिशा हो सकती है। इसीलिए उनका आमरण अनशन भी सत्य और अहिंसा के पारस्परिक संबंधों का सक्रिय और जीवंत उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि वे स्त्री शिक्षा के पक्षधर थे और विश्व भर के कई महान चिंतकों की तरह वे भी मानते थे कि किसी भी राष्ट्र की सभ्यता का वास्तविक मापदण्ड यह है कि वहाँ स्त्रियों के प्रति कैसा व्यवहार किया जाता है! एक सभ्य समाज अपने यहाँ की स्त्रियों के प्रति सम्मान का भाव रखता है। जब तक एक भी स्त्री के विरूद्ध बर्बरता और हिंसा होती रहेगी, तब तक हम कभी भी नहीं कह सकते कि, हम सभ्य हो चुके हैं, भले ही हम विज्ञान और आविष्कार की कितनी ही बुलंदिया क्यों न छू लें। ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ को अपना आदर्श मानने वाले गाँधी जी ने स्त्रियों को महज पूज्यनीय ही नहीं बताना चाहा था, बल्कि वे स्त्रियों को साक्षर, शिक्षित, समर्थ और सशक्त बनाना चाहते थे। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में उनकी बराबर की भागीदारी सुनिश्चित कराना चाहते थे। इस दिशा में उनके विचारों पर शोध किया जाना चाहिए। हिन्दी और अन्य भाषा के साहित्य वाले लोगों को भी गाँधी जी के जीवन दर्शन पर शोध करना चाहिए। महात्मा गाँधी तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ से अपनी ‘रामराज्य’ और ‘स्वराज’ की अवधारणा को काफी हद तक जोड़ते हैं। उनका रबीन्द्रनाथ ठाकुर से विशेष लगाव था। वे गुजराती के महान कवियों और मराठी के संतों की सांस्कृतिक चेतना से भी काफी प्रभावित थे। इस तरह उनमें एक साथ ही विभिन्न जीवन दृष्टियों का अखिल भारतीय रूप दिखाई पड़ता है। महात्मा गाँधी पर हिन्दी सहित समस्त भारतीय भाषाओं में प्रचुर साहित्य लिखा गया है। यहाँ तक कि झारखण्ड की प्रमुख जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं में भी बापू पर गंभीर साहित्य लिखा गया है। इनके बीच तुलनात्मक ढंग से शोध करने पर नयी दृष्टि और चेतना विकसित हो सकेगी, इसमें कोई संदेह नहीं।
उन्होंने कहा कि हमारा समय आत्मनिर्भरता को अनिवार्य रूप से आत्मसात करने का समय है। यहाँ भी गाँधी जी की कुटीर उद्योग की अवधारणा प्रासंगिक हो उठती है। उन्होंने कुटीर उद्योगों की बात करते समय यह ध्यान रखा कि इस तरह के उद्योगों को कृषि-उपजों पर अधिक से अधिक केन्द्रित रखा जाय। चूँकि भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है और कृषि कार्य में छोटे किसानों, सामाजिक रूप से पीछे छूट गये समुदायों और स्त्रियों का योगदान अधिक रहता है, इसलिए यदि इन्हें कुटीर उद्योगों से जोड़कर प्रोत्साहित किया जाय तो सोशल इंटीग्रेशन और यूनिफार्म नेशनल डेवलपमेंट की दिशा में मजबूती के साथ बढ़ा जा सकता है। ‘मेक इन इण्डिया’ के दायरे में कृषि आधारित कुटीर उद्योग-संस्कृति को भी प्रमुख स्थान दिलाने के लिए गंभीर शोध कार्य किये जाने चाहिए। लोकल को वोकल करने के लिए यह एक प्रस्थान बिंदु बन सकता है। गाँधी जी धर्म, ईश्वर और भक्ति को मनुष्य मात्र् ही नहीं बल्कि जीव मात्र् के कल्याण के नजरिये से देखते थे। उनकी दृष्टि में सृष्टि में रहने वाला हर जीवित अंश एक बराबर है। मनुष्य जरूर सबसे अधिक विकसित संरचना वाला प्राणी है, लेकिन जो कम विकसित हैं- यानि जानवर, पक्षी, कीट-पतंगे, सरिसृप आदि- सभी के लिए पृथ्वी पर उतनी ही जगह है, होनी चाहिए। बापू का यह दर्शन एक तरफ अद्वैत वेदांत की महान परंपरा से जुड़ता है तो दूसरी तरफ बायो डायवर्सिटी की अनिवार्यता पर भी बल देता है।
उन्होंने कहा कि आज पारविषयी यानी ट्रांसडिसिप्लिनरी शोध का दौर है। अब शोधकार्यों को इस रूप में करना है कि वे ज्ञान के दूसरे अनुशासनों से भी संवाद कर सकें। इस दृष्टि से गाँधी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करना नई संभावनाओं के द्वार खोलेगा। मुझे ज्ञात है कि महात्मा गाँधी ने झारखण्ड यानि तत्कालीन बिहार के रामगढ़, चाईबासा, जमशेदपुर आदि जिलों की यात्राएं भी की थीं। इन यात्राओं का जितना राजनीतिक और सामाजिक महत्व है उतना ही साहित्यिक महत्व भी है। गाँधी जी की यात्राओं पर भी यात्रा वृत्तांत लिखा गया है और उन पर ट्रांसडिसिप्लिनरी अप्रोच के साथ शोध किया जाने चाहिए। शोधकार्यों में शोध नैतिकता का होना अनिवार्य है। यदि हम एक सच्चे परिणाम को अपने शोधकार्य के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारी पूरी शोध प्रक्रिया भी सच्ची होनी चाहिए। बिना शोध नैतिकता का पालन किये जो भी शोध परिणाम आएगा वह प्लैगरिज्म का दोषी होगा। इसे हम गाँधी जी के उस विचार से जोड़कर देखें जिसमें वे कहते हैं कि- पवित्र साध्य के लिए साधन का भी पवित्र होना आवश्यक है। मैं आशा करती हूँ कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोध की संपूर्ण प्रक्रिया और इसकी निष्पत्तियाँ गाँधी जी के इस महान विचार का शतशः अनुसरण करते हुए सामने आएंगी।
गूगल मीट ऐप्लीकेशन पर अपराह्न 12 बजे से विमोचन समारोह का शुभारम्भ हुआ। शोध पत्रिका की प्रधान संपादक कोल्हान विश्वविद्यालय की कुलपति सह वीमेंस कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर (डॉ.) शुक्ला महांती ने स्वागत वक्तव्य देते हुए महामहिम राज्यपाल द्वारा ऑनलाइन विमोचन की सहमति और समय देने के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने शोध पत्रिका की पीयर रिव्यू समिति के सदस्यों प्रोफेसर मनोज कुमार, वर्धा, प्रोफेसर परमानंद सिंह, भागलपुर, प्रोफेसर नृपेन्द्र प्रसाद मोदी, वर्धा, प्रोफेसर पुष्पा मोतियानी, गुजरात और प्रोफेसर सुधाकर सिंह, वाराणसी से मिले सहयोग के प्रति आभार प्रकट किया। संपादक मंडल के सदस्यों और तकनीकी सहयोग समिति की भी उन्होंने सराहना की। उन्होंने जानकारी दी कि वीमेंस कॉलेज को यूजीसी द्वारा उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में मान्यता देते हुए इपोक थिंकर्स पर विशेषीकृत अध्ययन केन्द्र खोलने के लिए अनुदान दिया गया था। उसी के तहत काॅलेज में गाँधीयन स्टडीज सेंटर खुला और गाँधीयन स्टडीज पर एमफिल यहाँ से कराया जाता है। शोध पत्रिका का यह अंक इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें प्रकाशित आधे आलेख झारखंड के अध्येताओं के हैं तो आधे देश के अन्य अध्येताओं के। शोध पत्रिका को जल्दी ही यूजीसी केयर लिस्टिंग के लिए भेजा जाएगा।
शोध पत्रिका के संपादक मंडल में डाॅ. सुधीर कुमार साहू, डाॅ. पुष्पा कुमारी, डाॅ. अविनाश कुमार सिंह, डाॅ. नूपुर अन्विता मिंज, डाॅ. भारती कुमारी, डाॅ. मनीषा टाईटस, श्रीमती सोनाली सिंह, सुश्री शर्मिला दास व डाॅ. मिथिलेश चौबे शामिल हैं। समारोह का संचालन डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने व धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. नूपुर अन्विता मिंज ने किया। तकनीकी सहयोग का कार्य रितेश कुमार ठाकुर, बी. विश्वनाथ राव, ज्योतिप्रकाश महांती, के. प्रभाकर राव, तपन कुमार मोदक और रोहित कुमार ने किया। समारोह में 250 प्रतिभागी सीधे तौर पर और 387 प्रतिभागी यूट्यूब लाईव स्ट्रीमिंग से शामिल हुए।