जमशेदपुर : उच्च न्यायालय, कलकत्ता में टाटा स्टील लिमिटेड द्वारा इन्कैब इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सुरक्षित देनदारियों (त्रृणों) को आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा गैरकानूनी तरीके से प्राईवेट कंपनियों (कमला मिल्स, फस्का इन्वेस्टमेंट, पेगाशस एसेट रिकन्सट्रक्शन) को सौंप देने के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय में 2018 में दायर रिट पिटीशन नंबर 14251, 14253 और 15541 में आज जमशेदपुर के कर्मचारियों की तरफ से बहस समयाभाव के कारण पूरी नहीं हो सकी. अगली सुनवाई 11.03.2021 को होगी जिसमें मजदूरों की तरफ से अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव अपनी बहस पूरी करेंगे. जमशेदपुर कर्मचारियों के अधिवक्ता ने आजकी बहस में कहा कि उच्च न्यायालय, दिल्ली ने अपने 06.01.2016 के आदेश में टाटा स्टील को इंकैब कंपनी का अधिकार संभालने को कहा था और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सभी देनदार बैंकों के कंसोर्शियम के कस्टोडियन की हैसियत से इंकैब कंपनी से पूर्ण और अंतिम भुगतान के रूप 21.63 करोड़ रूपया लेना स्वीकार किया था. उन्होंने बताया कि उक्त आदेश में बैंकों की सुरक्षित देनदारियों को प्राइवेट कंपनियों को सौंपने की कोई बात नहीं है. दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय ने 01.07.2016 के फैसले में सही भी ठहरा दिया तो कमला मिल्स, फस्का इंवेस्टमेंट और पेगासश एसेट रिकंस्ट्रक्शन जैसी प्राईवेट कंपनियां, बैंकों द्वारा अपनी सुरक्षित देनदारियों को इन्हें सौंप दिया है, यह दावा लेकर कहाँ से आ गयीं? उन्होंने आगे बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के उक्त दोनों आदेशों के आधार पर इन प्राईवेट कंपनियों का कोई दावा इंकैब कंपनी पर नहीं बनता है. उन्होंने अदालत को सूचित किया कि 06.01.2016 के अपने उक्त आदेश द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय ने इंकैब की देनदार बैंकों की कुल सुरक्षित देनदारियों को जहाँ 21.63 करोड़ रूपये पक्का कर दिया था वही आज कमला मिल्स, पेगासश और फस्का जैसे फर्जी दावेदारों द्वारा एनसीएलटी में उसे अविश्वसनीय तरीके से बढ़ा कर 2339 करोड़ रूपये का दावा किया गया है. इससे यह पता लगता है कि इंकैब कंपनी, इसके मजदूरों, कर्मचारियों और तमाम हितधारकों के खिलाफ कितनी बड़ी धोखाधड़ी इन प्राईवेट कंपनियों द्वारा की गयी है. अधिवक्ता ने आगे कहा कि दस्तावेजों को देखने पर पता चलता है कि आईसीआईसीआई बैंक ने एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को इंकैब की अपनी सुरक्षित देनदारियां सौंप दी, जो कानूनन सही था, पर एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी ने इन सुरक्षित देनदारियों के आरआर केबल्स नाम की प्राईवेट कंपनी को सौंप दिया जिसने फिर उसे रमेश घमंडीराम गोवानी की कमला मिल्स और फस्का इनवेस्टमेंट नामक की कंपनियों को बेच दिया. फिर एक्सिस बैंक ने इंकैब की अपनी सुरक्षित देनदारियों को पेगासश एसेट रिकंस्ट्रक्शन को बेच दिया जबकि एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी 28.06.2019 तक इन सुरक्षित देनदारियों को तो दूसरी किसी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को भी नहीं बेच सकती थी. उन्होंने आगे बताया कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 28.06.2019 के अपने एक सरकुलर के माध्यम से पहली बार एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा दूसरी एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को इन सुरक्षित देनदारियों को बेचने का प्रावधान किया. ज्ञातव्य है कि ये एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियां विशेष उद्देश्य वाहन हैं जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की देखरेख में चलती हैं जिन्हें इन देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को बेचने का कोई हक ही नहीं है. अधिवक्ता ने अदालत को आगे बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने 09.04.2009 के आदेश द्वारा इन सुरक्षित देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को सौंपने को कहीं से भी सही नहीं ठहराया था और इस रूप में टाटा स्टील द्वारा उक्त आदेश की की गयी व्याख्या बिल्कुल गलत है और कमला मिल्स का यह दावा कि उक्त आदेश कल्कत्ता उच्च न्यायालय को इन सुरक्षित देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को बेचने के मामले पर फैसला देने से रोकता है बिल्कुल भ्रामक है. ज्ञातव्य है कि इस मामले में इंकैब इंडस्ट्रीज, लीडर यूनिवर्सल, आरआर केबल्स, कमला मिल्स, फस्का इन्वेस्टमेंट, ट्रॉपिकल वेंचर्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, कनारा बैंक, एलाहाबाद बैंक, सिटी बैंक हांगकांग एंड संघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, अर्सिल सहित 24 पार्टियां प्रतिवादी हैं जिन्होंने अपना पक्ष अबतक नहीं रखा है. ज्ञातव्य यह भी है कि कल्कत्ता उच्च न्यायालय ने एनसीएलटी द्वारा 07.02.2020 को दिये गये इंकैब कंपनी के परिसमापन के आदेश को अपने संज्ञान में लेकर 05.03.2020 के अपने आदेश में इंकैब के मजदूरों के वकील अखिलेश श्रीवास्तव के इस बहस को दर्ज किया था कि इंकैब कंपनी की सरकारी बैंकों की देनदारियों को प्राईवेट कंपनियों को सौंपना उच्चतम न्यायालय के आईसीआईसीआई बैंक बनाम ऑफिशियल लिक्विडेटर ऑफ एपीएस स्टेट इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2010) 10 एससीसी 1 मामले में दिये गये फैसले के प्रतिकूल है. उच्च न्यायालय ने यह भी दर्ज किया था कि सरकारी बैंक अपनी गैरनिष्पादित संपत्तियों (एनपीए) को सिर्फ सरकारी बैंकों, एसेट रिकंस्ट्रक्शन और एनबीएफसी कंपनियों को ही सौंप सकती हैं. उच्च न्यायालय ने अपने उक्त आदेश में यह भी दर्ज किया भारत के कानून में उस उपरोक्त व्यवस्था के अलावे कुछ और सक्षम करने का प्रावधान नहीं है. इसके अतिरिक्त रिजर्व बैंक के सर्कुलर को भी केंद्रित रखते हुए अधिवक्ताओं ने असाइनमेंट ऑफ डेब्ट को गलत बताया था और उच्च न्यायलय ने उसका संज्ञान लिया. इंकैब कर्मचारियों की तरफ से आज की सुनवाई में कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील अखिलेश श्रीवास्तव और आकाश शर्मा ने हिस्सा लिया.
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