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tata-steel-pn-bose-अगर ये शख्स नहीं होते तो टाटा स्टील झारखंड में नहीं होता, लॉकडाउन के बीच डिजिटल तरीके से दी जायेगी श्रद्धांजलि

स्वर्गीय पीएन बोस की फाइल तस्वीर.

जमशेदपुर : स्वर्गीय पीएन बोस नाम से लोकप्रिय विख्यात जियोलॉजिस्ट प्रमथ नाथ बोस की 165वीं जयंती मनाने के लिए टाटा स्टील 12 मई को सभी लोकेशनों में अपने कर्मचारियों के लिए कई डिजिटल गतिविधियों का आयोजन करेगी. सामाजिक दूरी को बढ़ावा देने के लिए इस वर्ष पहली बार डिजिटल श्रद्घांजलि का कार्यक्रम होगा. भारत सरकार के इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस के चीफ माइनिंग जियोलॉजिस्ट एसके अधिकारी द्वारा ‘5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था हासिल करने में खनन की भूमिका’ पर एक लाइव वेबीनार होगा. नयी सामान्य स्थिति के बीच कर्मचारियों को नया अनुभव प्रदान करने के लिए एक खास वेबपेज बनाया गया है, जिसमें कई प्रकार की गतिविधियां हैं. डिजिटल श्रद्घांजलि से लेकर पीएन बोस के जीवन और उनकी उपलब्धियों पर पॉडकास्ट, और ‘रॉक शो’ नामक इ-एक्जीबिशन, इस बार पूरी तरह से डिजिटल श्रद्घांजलि होगी. इस दिवस के उत्तरार्ध में पुस्तक ‘लाइफ ऐंड प्रीफेस ऑफ पीएन बोस’ से बुक रीडिंग सेशन होगा. यह सेशन पहले रिकॉर्ड किया गया है. जियोलॉजिस्ट (भूविज्ञानी) प्रमथ नाथ बोस यानी पीएन बोस का जन्म 12 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गायपुर गांव में हुआ था. लंदन यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक बोस ने 1878 में रॉयल स्कूल ऑफ माइंस से कोर्स पूरा किया. भूविज्ञानी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश में धुल्ली और राजहारा में लौह अयस्क खदानों की खोज की. उनकी सर्वाधिक उल्लेखनीय उपलब्धि मयूरभंज में गोरुमहिसानी की पहाड़ियों में लौह अयस्क भंडार की खोज रही. इस खोज के बाद, बोस ने 24 फरवरी, 1904 को जेएन टाटा को एक पत्र लिखा, जिसके फलस्वरूप साकची में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (अभी टाटा स्टील) की स्थापना हुई. पीएन बोस के नाम कई और उपलब्धियां हैं. उन्होंने कई ऐसे कार्य किये पहले किसी भारतीय ने नहीं किया था, जैसे-किसी ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक करने वाले वे पहले भारतीय थे. असम में सबसे पहले उन्होंने ही पेट्रोलियम की खोज की. भारत में उन्होंने साबुन का पहला कारखाना स्थापित किया और पेट्रोलॉजिकल कार्य में एक सहायक के रूप में उन्होंने सबसे पहले माइक्रो सेक्शंस लागू किये. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में एक वर्गीकृत पद पाने वाले पहले भारतीय थे. यहां उन्होंने विशिष्टता के साथ अपनी सेवाएं दी. एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा को निरंतर आगे बढ़ाने का काम किया. उनके ही प्रयासों के फलस्वरूप बंगाल टेक्निकल इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई, जो आज जाधवपुर यूनिवर्सिटी के नाम से विश्वविख्यात है. बोस इस यूनिवर्सिटी के पहले ऑनेररी प्रिंसिपल थे.

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