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Jamshedpur adivasi sengel abhiyan : हुल दिवस पर आदिवासी सेंगेल अभियान का डीसी ऑफिस पर धरना प्रदर्शन, उपायुक्त के जरिये राष्ट्रपति को अभियान की ओर से सौंपा सात सूत्री मांगपत्र

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जमशेदपुर : हुल दिवस के मौके पर आदिवासी सेंगेल अभियान ने रविवार को पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन कर उपायुक्त को राष्ट्रपति के नाम सात सूत्री मांग पत्र सौंपा. उभियान के सदस्यों ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि मांग पत्र में मुख्य रूप से अनुच्छेद 25 के तहत आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू किये जाने की मांग की गई है जिससे आदिवासी समुदाय का धर्मांतरण रोका जा सके. इसके अलावा आठवीं अनुसूची में शामिल राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संताली भाषा को झारखंड में अविलंब प्रथम राजभाषा का दर्जा देने, सभी स्कूल कॉलेजों में संताली भाषा के स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति करने के साथ ही अन्य आदिवासी भाषाओं, हो, मुंडारी, कुडुख, खड़िया आदि को भी समृद्ध करने की मांग भी की गयी है. (नीचे भी पढ़ें)

आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम में अविलंब जनतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को समाहित करते हुए आदिवासी गांव समाज में सुधार लाने में सरकारी तंत्र का सहयोग सुनिश्चित करने, अन्यथा स्वशासन के नाम पर वंशानुगत माझी परगना संविधान, कानून एवं मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है. इसी तरह आदिवासी समाज में व्याप्त नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, जबरन सामाजिक बहिष्कार, जुर्माना, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद-बिक्री आदि चलते रहेंगे. सेंगेल अभियान ने कुर्मी/ महतो जाति को एसटी में शामिल करने की अनुशंसा करने वाले मुख्यतः झामुमो और कांग्रेस का विरोध करने की घोषणा करते हुए कहा है कि केवल वोट बैंक के लोभ में किसी भी जाति या समुदाय को एसटी का दर्जा देना असली आदिवासियों के कत्लेआम जैसा है. (नीचे भी पढ़ें)

उन्होंने कहा कि आदिवासी सेंगेल राजनीतिक लाभ और लालच के लिए कुर्मी/महतो या किसी और जाति को एसटी का दर्जा दिये जाने का विरोध करता है. महान वीर शहीद सिदो मुर्मू और बिरसा मुंडा के वंशजों के लिए दो ट्रस्टों का गठन कर प्रत्येक को एक-एक सौ करोड रुपये का अंशदान प्रदान करने की मांग भी की गयी है ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके. आदिवासी संतालों के सबसे बड़े इष्ट देवता मरांग बुरू पारसनाथ पहाड़ी है, जो गिरिडीह जिले में स्थित है. उसे 5 जनवरी 2023 को पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जैन समुदाय के हाथों सौंप दिया. अभियान ने उसे अविलंब आदिवासियों को वापस किये जाने की मांग की है, ताकि पहाड़ पर्वत बचाने से प्रकृति एवं पर्यावरण भी संतुलित रहेंगे. असम अंडमान आदि प्रदेशों में लगभग 200 वर्ष से ज्यादा समय से रह रहे झारखंडी आदिवासियों को अविलंब एसटी का दर्जा देने की मांग भी की गयी है.

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