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Saraikela-Kharsawn : खरसावां छऊ नृत्य कला केन्द्र में रंगारंग सांस्कृतिक उत्सव- 2023 संपन्न

सरायकेला : गुरुवार को खरसावां छऊ नृत्य कला केन्द्र में सांस्कृतिक मंत्रालय भारत सरकार की अनुषंगी संस्थान पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के सौजन्य से आयोजित जनजातीय एवं पारंपरिक नृत्य- संगीत से सुसज्जित रंगारंग सांस्कृतिक उत्सव- 2023 संपन्न हो गया. कार्यक्रम के अंतिम दिन खरसावां छऊ, सरायकेला छऊ, संथाली नृत्य, मानभूम छऊ, मागे, हो, नटवा और झूमर सहित कई टीमों ने अपनी कला का प्रदर्शन कर लोगों की वाह वाही लूटी. विभिन्न नृत्य दलों के कलाकारों द्वारा बेहतर कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकार को मोमेन्टो देकर सम्मानित किया गया. कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन खरसावां विधायक दशरथ गागराई, सरायकेला अनुमडल पदाधिकारी रामकृष्ण कुमार आदि पदाधिकारियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया. (नीचे भी पढ़ें)

मौक पर श्री गागराई ने कहा कि खरसावां शहीदों औंर कलाओ की धरती है. खरसावां कितनी विभिन्नताओ से सुसज्जित है, खरसावां में जो देखा है और कहीं नहीं देखा. इसलिए सरायकेला- खरसावां को कला की धरती कहा गया है. उन्होंने कहा कि कला के क्षेत्र में सबको भागीदारी मिल रहा है. जिला का कला संस्कृति देश के साथ विदेशों में भी फैला हुआ है. यह हमारे लिए गर्व की बात है. इसी तरह से हम अपनी कला संस्कृति को बढ़ाते हुए आगे बढ़े और कला संस्कृति और खेलकूद के माध्यम से अपना केरियर बनाएं. उन्होंने ने कहा कि कला और जीवन का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है. कला के विकास का उद्देश्य कभी आत्मानुभूति होता है, तो कभी आनन्द और विनोद. कला के माध्यम से कभी संघर्ष किया जाता है, तो कभी उस संघर्ष से मुक्ति पाई जाती है. कला यश- प्राप्ति, धन- प्राप्ति, शान्ति- प्राप्ति तथा समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी बनती है. (नीचे भी पढ़ें)

वहीं सरायकेला अनुमंडल पदाधिकारी राम कृष्ण कुमार ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने संपूर्ण जीवन में किसी न किसी रूप में कला से जुड़ा रहता है. चाहे वह चित्रकारी हो, रंगमंच हो, फिल्में हों या संगीत. हजारों वर्षों से मानव जाति कला के इन रूपों को अपने जीवन का हिस्सा बनाए हुए है. हमारी रुचियां न केवल व्यक्तिपरक होती हैं बल्कि सांस्कृतिक मानदंडों, शिक्षा और प्रदर्शन से भी प्रभावित होती हैं. कला मानवीय अनुभव का एक ऐसा क्षेत्र है जो प्रकृति में समानता नहीं रखता है. उन्होने कहा कि कला के रूपों में आम सहमति होने के बाद भी अधिकांश व्यक्ति कलाकृतियों को अलग तरह से आंकते हैं. संस्कृति के बिना कला नहीं हो सकती, दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं. कला संस्कृति को दर्शाती है. संस्कृति को प्रसारित करती है, इसको आकार देती है.

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