रामगोपाल जेना/चाईबासा : जेष्ठ की शुरुआत व कड़ाके की धूप की तपिश के बीच शुक्रवार को उरांव समुदाय की ऐतिहासिक जतरा पूजा का आयोजन हुआ. इसमें पाहन (पुजारी) फागू खलखो व सहयोगी पनभरवा (पुजारी) मंगरू टोप्पो ने विधि पूर्वक पूजा अर्चना की. इसमें ईष्ठ देवता, ग्राम देवता की पूजा कर अच्छी वर्षा की कामना की गयी, जिससे अच्छी तरह से खेती-बाड़ी हो सके. चाईबासा के सातों अखाड़ों में क्षेत्रीय कमेटी के दिशा-निर्देश के अनुरूप धूमधाम से नाच-गान का आयोजन हुआ. जतरा उरांव समुदाय का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पर्व है. इस पर्व को विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. (नीचे भी पढ़ें)
बताया जाता है कि जब रोहतास गढ़, जो उरांव समुदाय का सुसम्पन्न साम्राज्य था, उस समय के उरांवों के राजा उरुगन ठाकुर हुआ करते थे. राज्य की खुशहाली एवं संपन्नता को देख विदेशी आक्रमणकारियों ने राज्य पर कब्जा करने की नीयत से तीन बार आक्रमण किया. किन्तु तीनों ही बार उन आक्रमणकारियों को पराजय का सामना करना पड़ा. इन तीनों युद्धों में दुश्मनों को पराजित करने में महिलाओं का बड़ा हाथ रहा, जिनमें दो महिलाएं, सिनगी दाई व कुइली दाई की अहम भूमिका रही. सभी महिलाओं ने पुरुष के वेश में युद्ध में हिस्सा लिया था. महिलाओं के बल पर तीन बार विजय प्राप्त करने के बाद इसे विजय का प्रतीक मानकर जीत के उपलक्ष्य में जतरा पर्व मनाया जाने लगा. (नीचे भी पढ़ें)
पर्व में जिस ध्वज का उपयोग किया जाता है (जो नीले रंग का होता है) उस ध्वज के बीच में सफेद वृत्ताकार के बीच तीन सफेद लकीरें आज भी जीत के प्रतीक के रूप में वर्तमान हैं. इस अवसर पर मुख्य रूप से समाज के मुखिया लालू कुजूर एवं समाज के सभी पदाधिकारी, दुर्गा कुजूर, राजू तिग्गा, खुदिया कुजूर, सीताराम मुण्डा, शम्भु टोप्पो, राजेन्द्र कच्छप, जगरनाथ लकड़ा, कृष्णा तिग्गा, जगन्नाथ टोप्पो, तेजो कच्छप, मथुरा कोया, शम्भु तिर्की, कृष्णा कच्छप, बिरसा लकड़ा, रवि तिर्की, बंधन खलखो, दीपक टोप्पो, सुनील खलखो, करमा कुजूर, पिंटू कच्छप, उमेश मिंज, संजय तिग्गा, नवीन कच्छप, राजेश कच्छप, बिगू लकड़ा, आकाश आदि उपस्थित थे.