राजन सिंह
चाकुलिया : दुर्गापूजा के अवसर पर आदिवासी समाज के युवा धोती पहनकर और माथे पर मौर पंख बांध हाथ में भुवांग लेकर पहले समाज के युवा बाजार और ग्रामीण क्षेत्र के पूजा पंडालों में दासाई नृत्य करते देखे जाते थे, परंतु अब धीरे धीरे समाज से यह नृत्य प्राय बिलुप्त सा हो गया है. आज भी समाज की संस्कृति से जुड़ी दसाई नृत्य किसी किसी गांव में देखने को मिलता है. समाज के कुछ बुजुर्ग और आसेका के संयुक्त महासचिव रतन कुमार मांडी से पूछा गया कि दसाई नृत्य का महत्व क्या है? पर उन लोगों ने कहा कि यह नृत्य उत्साह या खुशी का नृत्य नही है, दसाई नृत्य समाज में दुख से जुड़ी हुई नृत्य है. कहा कि वर्षो पूर्व समाज के लोगों ने यह नृत्य किया था.दा का मतलब पानी से है और साई का मतलब कमना है. पानी का कमने पर ही यह नृत्य समाज के लोगों ने समाज के योद्धा देवी, दुर्गा और उनकी बहन आयनो और काजल की खोज शुरू किया था. इस कारण इस नृत्य का नाम दासाई पड़ा है. उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पूर्व की बात है समाज में दो योद्धा देवी और दूर्गा हुआ करता था. समाज के युवती और महिलाओं पर हो रही अत्याचार के बिरूद्ध दोनों योद्धाओं ने गैर आदिवासी समाज के बिरूध आंदोलन और युद्ध शुरू किया. दोनों योद्धाओं को कोई भी परास्त नही कर पा रहे थे. गैर आदिवासी समाज के लोगों ने देवी और दुर्गा की शक्ति का पता लगाया कि दोनों की दो बहन है आयनो और काजल है. दोनों बहने जब भी दोनों भाईयों को युद्ध करने के लिए अस्त्र देती है तो देवी और दुर्गा को कोई भी युद्ध में परास्त नही कर सकता है. तब गैर आदिवासी समाज के लोगों ने अयनो और काजल को बंदी बनाने की योजना बनाई और एक दिन झरना से पानी लेने गई अयनो और काजल को उन लोगों ने बंदी बनाकर अपने साथ ले गये. दोनों बहनों की बंदी बनाने की सूचना पर देवी और दुर्गा बहनों की खोज करते हुए नदी तट पहुंचे,नदी के दुसरे छोर पर नाव पर कुछ लोग दिखाई पड़े तो देवी और दुर्गा ने बिना कुछ सोचे समझे दोनों नदी में छलांग मार दी.आदिवासी समाज के अन्य लोग भी अयनो, काजल, देवी और दुर्गा को खोजते हुए नदी तट पर पहुंचे नदी में बाढ़ आया था पानी भरा था. देवी और दुर्गा का भी कोई पता नही चल पाया. तब समाज के लोगों ने निर्णय लिया कि नदी में बाढ़ का पानी जब कमेगा तब चारों की तलाश शुरू किया जाएगा. समाज के लोगों ने दुर्गा पूजा के दिन समाज के लोग (छद्धभेष)भेष बदलकर यानी कि महिलाओं की रूप धारण कर गांव गांव में नृत्य करते हुए आयनो, काजल, देवी और दुर्गा की तलाश करना शुरू कर दिया. (आगे की रिपोर्ट नीचे पढ़ें)
समाज के लोगों का मानना है कि जब समाज के लोग भेष बदलकर देवी, दुर्गा, आयनो और काजल की खोज दासाई नृत्य करते हुए शुरू किया था तब दसाई माहिना था.समाज के लोग नृत्य करते हुए घर घर दरवाजा तक जाते थे और चारों की तलाश करते थे, जब महीनों बितने के बाद लोगों को चारों नही मिले तो सभी अपने घर लौट आये. तब से लेकर आज तक समाज के लोग दसाई महीना के दुर्गा पूजा के अवसर पर समाज के युवा अपना भेष बदलकर दसाई नृत्य करते हैं. आज भी समाज के युवा दसाई नृत्य करते हुए एक गांव से दूसरे गांव घर घर जाकर आयनो, काजल, देवी और दुर्गा की तलाश करते हैं. समाज के लोगों ने बताया कि यह नृत्य खुशी या उत्सव का प्रतीक नही है बल्कि समाज के लिए दुख का दिन है. कहा कि इसी कारण से यह नृत्य पर गीत का बहला बोल हाय रे हाय रे हाय रे हाय है…. समाज के युवा आज भी अपना भेष बदलकर इसी गीत को गाते हुए नाचते है और आयनो, काजल, देवी और दुर्गा की तलाश करते हैं. कहा कि दसाई महीना के पांचवे दिन से अगले पांच दिनों तक समाज के युवा दसाई नृत्य करते हैं समाज के लोग अंत में अखाड़ा में अपने गुरूओं की पूजा बंदना कर गुरूओं को अखाड़ा में छोड़ अपने अपने घर लौट जाते हैं.