जमशेदपुर : आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से न्यूयॉर्क सेक्टर में धर्म महासम्मेलन का आयोजन 7 और 8 नवंबर को किया गया। इसमें लगभग 40 देश के हजारों साधकों को आनंद मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने हेहल स्थित आनंद मार्ग आश्रम से ऑनलाइन जूम के माध्यम से संबोधित किया। उन्होंने निर्गुण ब्रह्म, सगुण ब्रह्म और तारक ब्रह्म की विस्तृत व्याख्या की। आचार्य ने बताया कि जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म का बोलबाला हो जाता है तो ब्रह्म स्वयं ही संकल्प देह धारण कर जीव मात्र का स्थाई कल्याण करते हैं। सद्गुरु के गुणों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि सद्गुरु के कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं होते हैं। परा और अपरा ज्ञान के लिए उन्हें किसी भी प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन नहीं करना पड़ता है, वे स्वयं ज्ञानमूर्ति होते हैं। सद्गुरु सर्वज्ञ, सर्वत्र और सर्वशक्तिमान होते हैं। (आगे की रिपोर्ट नीचे पढ़ें)
आध्यात्मिक साधना के गुप्त सोपान की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने बताया कि आनंद मार्ग की साधना राजाधिराज योग की साधना है। ईश्वर प्रणिधान की साधना में साधक कहता है कि मैं तुम्हारा हूँ, तुम हमारे हो। धीरे-धीरे इस भाव की साधना करते-करते साधक का चित्र में हम हाथ में और महत्त्व भूमा मन में रूपांतरित हो जाता है और साधक का विकल्प समाधि की अनुभूति करता है। भाव मूर्ति की साधना करते-करते साधक स्वयं ही भाव मूर्ति हो जाता है, तो इसे निर्विकल्प समाधि की संज्ञा दी जाती है। आचार्य जी ने कहा कि कोरोनावायरस के कारण वैश्विक महामारी के संकटकाल में मनुष्य को तन-मन की शुद्धि करके आत्मोन्नति के लिए चेष्टाशील रहना चाहिए। वर्चुअल धर्म महासम्मेलन की उत्कृष्ट व्यवस्था न्यूयॉर्क सेक्टर के सेक्टोरियल सेक्रेटरी आचार्य अभिरामानंद अवधूत ने आनंद मार्गी भाई-बहनों और सन्यासी दादा-दीदियों के सहयोग से किया। विस्तृत जानकारी देते हुए केंद्रीय धर्म प्रचार सेक्रेटरी आचार्य सत्याश्रयानंद अवधूत ने बताया कि रांची से प्रसारण के कार्यक्रम की पूरी व्यवस्था आचार्य हरिशानंद अवधूत (केंद्रीय जन संपर्क सचिव) की देखरेख में संचालित हुई। इस अवसर पर केंद्रीय कार्यकारिणी के महासचिव आचार्य चित्तस्वरूपानंद अवधूत, आचार्य राकेशानंद अवधूत, आचार्य रमेंद्रानंद अवधूत, आचार्य अमलेशानंद अवधूत, आचार्य नभातीतानंद अवधूत, आचार्य संपूर्णानंद अवधूत, आचार्य रागानुगानंद अवधूत, आचार्य युक्तात्मानंद अवधूत, आचार्य सवितानंद अवधूत समेत 20 से भी अधिक सन्यासीगण उपस्थित थे।