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चांडिल : सुवर्णरेखा नदी से सोना निकाल कर जीवन यापन करते हैं सैकड़ों लोग, सोने के कण खरीद कर दलाल व सोनार बन रहे करोड़पति

अनिशा गोराई / चांडिल : किसी नदी के बारे में यह बात सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन अपने रत्नगर्भा देश में एक ऐसी नदी है जिसके रेत बालू) से सैकड़ों साल से सोना निकाला जा रहा है. इस नदी का नाम सुवर्णरेखा है. जनश्रुति के अनुसार नदी का नाम उद्गम काल में कुछ और था, परंतु कालांतर में लोगो ने देखा कि इस नदी के बालू के कण में सोना का अंश है. इसी के अनुसार नदी का नामकरण सुवर्णरेखा हुआ. यह नदी देश के झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के राज्यों से  बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है.  नदी का उद्गम रांची से करीब 16 किलोमीटर दूर में है. सुवर्णरेखा नदी की लंबाई 474 किलोमीटर है.
वर्तमान में चांडिल डैम के नीचे से जमशेदपुर के सोनारी दोमुहानी तक प्रतिदिन सैकड़ों लोग नदी के बालू से सोना का कण निकालने का काम कर रहे हैं. इसी काम से ये लोग अपना जीवन यापन करते हैं. चांडिल प्रखंड अंतर्गत जयदा, मानीकुई, तारकुवांग, धतकीडीह, हारूडीह, भुइंयाडीह, चिलगु, शहरबेड़ा, कान्दरबेड़ा, पुडीसीलि, गौरी, दोमुहानी, कपाली आदि क्षेत्रों में सुवर्णरेखा नदी पर प्रतिदिन सोना धोने के लिए चांडिल व नीमडीह प्रखंड के गरीब लोग आते हैं. साल में छह से आठ महीने नदी के बालू से सोना निकाला जाता है. प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दो सौ रुपये तक आमदनी कर लेता हैं. इस रोजगार से सोना धोने वाले के परिवार का भरण पोषण होता है. एक व्यक्ति सोने का कण बेचकर प्रति माह पांच से आठ हजार रुपये तक का रोजगार कर लेता है. लेकिन स्थानीय दलाल व सोनार सोना निकालने वाले लोगों से कम कीमत पर सोना के कण खरीदते हैं. यहां के आदिवासी परिवारों से सोने का कण खरीदने वाले दलाल व सोनारों ने इस कारोबार से करोड़ों की संपत्ति बनाई है.

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