खबरjamshedpur death anniversary पत्रकार गंगाप्रसाद 'कौशल' की पुण्यतिथि पर विशेष, जमशेदपुर की...
spot_img

jamshedpur death anniversary पत्रकार गंगाप्रसाद ‘कौशल’ की पुण्यतिथि पर विशेष, जमशेदपुर की बंजर धरती पर उगाया पत्रकारिता का वृक्ष

राशिफल

जमशेदपुर:जानेमाने पत्रकार व साहित्यकार गंगाप्रसाद ‘कौशल’ 1953 से ‘आज़ाद मज़दूर’ के प्रकाशक, संपादक व मुद्रक करते रहे. 2 मई 1975 में कौशल जी के देहांत के बाद यह जिम्मेदारी उनकी पत्नी श्रीमती सरला कौशल ने अपने कंधे पर ली थी. उनके बाद आजाद मजदूर का प्रकाशन उनके पुत्र कवि कुमार ने जारी रखा.हिन्दी के यशस्वी कवि-पत्रकार गंगाप्रसाद ‘कौशल’ द्वारा प्रकाशित ‘आज़ाद मजदूर की पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है, जन समस्याओं को मजबूती से उजागर करना, साथ ही मज़दूरों, गरीबों, बेसहारों के हितों की बात करना.आज से 71 साल पहले जमशेदपुर में बड़े-बड़े कारखाने लग जाने के बाद श्रमिकों के इस शहर में एक सशक्त अखबार की जरूरत महसूस की गयी. भारत की आज़ादी के अंतिम संघर्ष के दिनों में व आज़ादी मिल जाने के बाद के कुछ वर्षों तक प्रोफेसर अब्दुल बारी जमशेदपुर में सर्वमान्य मज़दूर नेता थे. इन्हीं की प्रेरणा से कौशल जी जमशेदपुर आये और श्रमिकों को समर्पित एक साप्ताहिक अखबार निकाला. सन 1948 में उन्होंने इंटक के अखबार ‘मज़दूर आवाज’ का सम्पादन प्रारंभ किया. (नीचे भी पढ़े)

दुर्भाग्य से कुछ ही दिनों उपरांत प्रोफेसर अब्दुल बारी की हत्या कर दी गयी और फिर कई कारणों से ‘मज़दूर आवाज’ का प्रकाशन बंद हो गया. किन्तु एक मौलिक साहित्यकार, पत्रकार की अन्तर्धारा का बहाव रुकता नहीं है. एक रास्ते के बंद हो जाने के बाद वह दूसरा रास्ता बना लेता है. गंगाप्रसाद ‘कौशल’ ने मज़दूरों की आवाज बुलंद करने के लिए 1953 में एक नया साप्ताहिक अखबार ‘आज़ाद मज़दूर का सम्पादन व प्रकाशन प्रारंभ किया. जिसे वे पूरी निष्ठा, लगन, दक्षता और क्षमता के साथ निकालते रहे. जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने अखबार के लिए समर्पित भाव से काम किया. पत्रकार के रूप में कौशल जी जहां सिंहभूम में पत्रकारिता के जनक माने जाते हैं, वहीं एक श्रेष्ठ कवि के रूप में मान्य, प्रशंसित और पुरस्कृत भी हुए. भारत सरकार ने उनकी पुस्तक ‘वीर बालक’ को पुरस्कृत किया था. 2 मई 1975 में कौशल जी का निधन हो जाने के बाद अखबार को गहरा आघात लगा. श्रीमती सरला कौशल जो अर्द्धांगिनी होने के नाते उनकी योजना, कल्पना, कार्य-दक्षता से परिचित थीं, वहीं से एक शक्ति उनके हृदय में उतरी और ‘आज़ाद मजदूर’ अपने सर्जक की अनुपस्थिति में उदासीनता की पीड़ा को भूलकर फिर एक बार अपना लक्ष्य भेदने की ओर आगे बढ़ने लगा. 1975 के मई माह से ही श्रीमती कौशल ने ‘आज़ाद मजदूर के प्रकाशन का भार संभाल लिया.(नीचे भी पढ़े)

कौशल जी ने किसी भी स्तर पर सरकारी मदद के लिए अफसरों की ‘पूजा संस्कृति’ में विश्वास नहीं किया. गंगाप्रसाद कौशल के लिए घूस देना संभव नहीं था और बिना घूस लिए सरकारी अफसरों के लिए सरकारी विज्ञापन देना संभव नहीं था. उस दौर में जबकि इस औद्योगिक क्षेत्र में स्थानीय अखबार पढ़ने की अभिरुचि नहीं थी तब एक अखबार के लिए सबसे पहला काम पाठकों में स्थानीय अखबार पढ़ने की रुचि उत्पन्न करना था. इस दुष्कर काम को करने में कौशल जी जैसे प्रतिभावान सम्पादक ही सफल हो सकते थे. अपने जीवन के अंतिम चरणों में तक उन्होंने यह कर्तव्य निभाया.

Ad

Must Read

Related Articles

Floating Button Get News On WhatsApp

Discover more from Sharp Bharat

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading