जमशेदपुर : जमशेदपुर का जुबिली पार्क शहर की हृदयस्थली कहलाता है. यहां विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे हरियाली की ऐसी समां बांधते हैं कि जो यहां आता है वह खूबसूरती पर मोहित हुए बिना नहीं रहता. आते जाते शायद ही हम ध्यान देते हैं कि यहां देश-विदेश से लाए गए एक से बढ़कर एक पेड़ पौधे हैं जो पचास-सत्तर साल पुराने होने के बावजूद लोगों को प्राणवायु दे रहे हैं. टाटा स्टील ने प्लांट के पचास साल पूरे होने पर शहरवासियों को जुबिली पार्क का तोहफे में दिया था. इसे कर्नाटक मैसूर के वृन्दावन गार्डेन की तर्ज़ पर इसे बनाया गया है जिसकी देख रेख टाटा स्टील की सब्सिडियरी कंपनी जुस्को करती है.1958में तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने जुबिली पार्क का उद्घाटन किया था. (नीचे भी पढ़ें)
साल 1955 में इसे बनाने की जिम्मेदारी जी एच क्रुम्बिगेल और बी एस निर्दय को दिया गया जो पहले मैसूर और दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन के निर्माण कार्य की देख रेख कर चुके थे. पार्क निर्माण के लिए विदेशो से पेड़ मंगाए गए थे. तब दस दस साल से भी ज्यादा उम्र के पेड़ लगाए गए थे जो आज पुराने होने के बावजूद वजूद बनाए हुए हैं और पर्यावरण संरक्षण में भूमिका निभा रहे हैं. इनमें से कई पेड़ साऊथ अमेरिका से भी लाए गए थे जो जमशेदपुर के होकर रह गए , यहां के आवोहवा में ढ़ल गए. आज तक इनमें फूल खिलते हैं और लोगों के लिए जीवनदायिनी हैं. इन पेड़ों में कई ऐसे हैं जो पुराने हो गए हैं लेकिन अब भी ऐसे पेड़ हैं जो पचास या सत्तर अस्सी साल से भी ज्यादा पुराने होकर भी नए से लगते हैं. (नीचे भी पढ़ें)
जुबिली पार्क के भीतर माहुगनी, गोल्डेन कैशिया समेत सौ से भी ज्यादा किस्म के पेड़ हैं लेकिन सबसे ज्यादा आकर्षक हैं कैंडल ट्री जिसमें कैंडलनुमा फूल लटके रहते हैं. ये भी साऊथ अमेरिका से लाए गए थे. इसके अलावा ट्रंपेट ट्री की प्रजाती भी लोगों को खूब आकर्शित करती है. इस प्रजाती के पेड़ में गुच्छे में अलग अलग रंग के फूल लगते है जो बेहद खूबसूरत लगते है. पेड़ो की बारे में जानकारी रखने वाली टीएमएच से रिटायर्ड हो चुकी डॉ विजया भरत बताती है कि पार्क में सीबा पेड़ है जो कि सबसे उंचे पेड़ो की गिनती में आता है. यह पार्क में बस दो ही है. उन्होने बताया कि हेवन लोटस पेड़ शहर भर में एक ही पेड़ है जो पार्क में लगा है. इसके अलावा यहां ऐतिहासिक बरगद का भी पेड़ है जिसे किसी और ने नहीं बल्कि जुबिली पार्क का उद्घाटन करने पहुंचे तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने लगाया था. ये बरगद का पेड़ आज भी लोगों को छांव दे रहा है जहां जाकर लोग सुस्ताते हैं. मगर बहुत कम लोग इस जगह के ऐतिहासिक महत्व को समझते हैं क्योंकि कभी ध्यान से देखा ही नहीं.