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jamshedpur-panchayat-election-जमशेदपुर के जिला परिषद संख्या 6 पर जीती कुसुम पूर्ति, भाजपा नेता राजकुमार सिंह ने अपने दूसरे प्रत्याशी को जीताकर अपनी पकड़ और बादशाहत साबित की, जानें कौन है कुसुम पूर्ति, जिसने सरकारी नौकरी त्याग कर लड़ा था जिला परिषद का चुनाव, क्या है उनकी मंशा

कुसुम पूर्ति.

जमशेदपुर : झारखंड के पंचायत चुनाव के चौथे चरण की मतगणना के दूसरे दिन पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष और भाजपा नेता राजकुमार सिंह के समर्थित उम्मीदवार कुसुम पूर्ति ने भी जीत दर्ज कर ली है. जमशेदपुर के जिला परिषद सदस्य संख्या 6 में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सोमा देवी को हरा दिया. कुसुम पूर्ति ने सोमा देवी को कुल 2100 वोट से पराजित कर दिया. सोमा देवी सरजामदा निवासी जीतेंद्र सिंह की पत्नी है. जमशेदपुर के जिला परिषद क्षेत्र संख्या 6 से कुसुम पूर्ति को कुल 7158 मत प्राप्त हुए जबकि सोमा देवी को 4590 मत प्राप्त हुए. मंजू देवी को तीसरा स्थान पर संतोष करना पड़ा, जिनको कुल 4290 मत प्राप्त हुए. राजकुमार सिंह जिला परिषद के इसी सीट से चुनाव लड़ते आये थे और वे जिला परिषद के उपाध्यक्ष रहे थे. एक कद्दावर भाजपा नेता के तौर पर उन्होंने अपने परिवार की जगह कुसुम पूर्ति को चुनाव लड़ाया था और समर्थन किया था. (नीचे देखे पूरी खबर)

एडीएम से सर्टिफिकेट लेती कुसुम पूर्ति.

राजकुमार सिंह के दूसरे समर्थित उम्मीदवार की जीत ने साबित की पकड़
राजकुमार सिंह ने अपनी सीट को छोड़कर अपने परिवार को भी चुनाव में नहीं उतारा. वे चाहते तो अपना पद छोड़कर उसी पद से चुनाव लड़ते लेकिन उन्होंने कुसुम पूर्ति को चुनाव लड़ाया. यहीं नहीं, जमशेदपुर के जिला परिषद संख्या 7 पर अपने करीबी और भाजपा नेता पंकज सिन्हा को चुनाव लड़ाया और उनको भी चुनाव जीताया. इस तरह राजकुमार सिंह के दोनों प्रत्याशी चुनाव जीतकर आ गये है. जिला परिषद सदस्य के तौर पर उनके दो लोग तैयार है. भाजपा के कद्दावर नेता राजकुमार सिंह ने अपने दोनों सीट पर अपने प्रत्याशी को चुनाव में जीताकर अपनी बादशाहत साबित की है और साबित की है कि उनकी पकड़ कितनी मजबूत समाज में है. (नीचे देखे पूरी खबर)

जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह के साथ कुसुम पूर्ति और पंकज सिन्हा.

कौन है कुसुम पूर्ति
परसुडीह के सरजामदा स्थित लुपुंगटोला की निवासी कुसुम पूर्ति ने एल बीएसएम कॉलेज से इंटर तक की पढ़ाई की है. उनका लक्ष्य अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरा करना है, चुनाव खत्म होने के बाद वह अपनी स्नातक डिग्री हासिल करने पर फोकस करेंगी. कुसुम पिछले पांच साल से जमशेदपुर प्रखंड में सामाजिक उत्प्रेरक के रूप में काम रही हैं. जलजीवन मिशन के तहत जल संरक्षण तथा स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालय निर्माण के लिए लोगों को प्रेरित करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है. इसके अलावा सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के कारण कुसुम क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं. उन्होंने स्वयं सहायता समूहों और ग्राम संगठनों के साथ भी नजदीकी से काम किया है. समाजसेवा में आने के बारे में कुसुम कहती हैं कि वे नौकरी में रहते हुए भी समाजसेवा करती रही हैं. समाज खासकर महिलाओं के लिए कुछ अलग करने का जज्बा हमेशा से उनके दिल में था. उनका कहना है कि नौकरी की अपनी मजबूरियां होती हैं. यही कारण है कि उन्होंने पंचायत चुनाव के माध्यम से जनसेवा का पूर्णकालिक काम चुना है. जिला परिषद चुनाव ही क्यों? इस सवाल पर कुसुम कहती हैं कि जिला परिषद के उपाध्यक्ष राजकुमार सिंह की प्रेरणा से उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है. कुसुम के अनुसार समाजसेवा के उनके कार्यों और जरूरतमंद लोगों के लिए कुछ करने की उनकी लगन से प्रभावित होकर राजकुमार सिंह ने उन्हें जिला परिषद का चुनाव लड़ने की सलाह दी. (नीचे देखे पूरी खबर)

जीत के बाद समर्थकों के बीच कुसुम पूर्ति.

दादी और बुआ को देख जगी समाजसेवा की ललक
समाजसेवा के माध्यम से अपना नाम, पहचान और अपना मुकाम हासिल करने की इच्छा रखनेवाली कुसुम के मन में अपनी दादी और बुआ को देख कर समाजसेवा की ललक पैदा हुई. कुसुम अपनी दादी करुणा पूर्ति के रास्ते पर चल रही हैं, जिन्होंने लोगों की सेवा के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. कुसुम बताती हैं कि उनकी दादी पहले असम में नर्स के रूप में तैनात थीं. बाद में उन्होंने टाटा मोटर्स अस्पताल में नर्स के रूप में सेवा दी, लेकिन लोगों की सेवा के प्रति वे इतनी समर्पित थीं, कि उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और आजीवन दीन-दुखियों की सेवा करती रहीं. इलाके में उनका बड़ा नाम है. (नीचे देखे पूरी खबर)

कुसुम पूर्ति का फाइल तस्वीर.

अपनी अलग पहचान बनाना चाहती है कुसुम
कुसुम अविवाहित हैं. शादी के बारे में पूछे जाने पर कहती हैं कि एक लड़की के लिए अपनी पहचान होना जरूरी है. हमारे समाज में लड़की जन्म के समय पिता, शादी के बाद पति और बुढ़ापे में बेटे के नाम से जानी जाती हैं. लेकिन मुझे अपने नाम से जाना जाता है. इसका मुझे गर्व है कि मेरे पिताजी को लोग आज मेरे नाम से जानते हैं.

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