नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बैलट पेपर से चुनाव कराने और इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन और वीवीपैट स्लिप की 100 फीसदी क्रॉस-चेकिंग कराने से जुड़ी याचिकाएं खारिज कर दीं. लेकिन एक बड़ा फैसला भी दिया. कोर्ट ने ईवीएम के इस्तेमाल के 42 साल के इतिहास में पहली बार जांच का रास्ता खोल दिया. सुनवाई शुक्रवार को हुई और बेंच जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की थी. दोनों ने एकमत से फैसला सुनाया.(नीचे भी पढ़े)
इस केस में 3 पक्ष शामिल थे…एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म यानी याचिकाकर्ता, चुनाव आयोग, सरकार और अफसर. केस चुनाव और मतदान से जुड़ा है तो राजनीतिक पार्टियां और आम जनता भी जुड़ी हुई है.सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आम आदमी की वोट देने की प्रोसेस में कोई बदलाव नहीं होगा. वोटर पोलिंग बूथ जाएगा. अंगुली पर स्याही लगेगी. चुनाव अधिकारी कंट्रोल यूनिट का बटन दबाएगा. वोटर बैलट यूनिट में कैंडिडेट के नाम के सामने का बटन दबाएगा और फिर कुछ सेकेंड तक वीवीपैट की लाइट में अपनी पर्ची देख सकेगा.दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले किसी कैंडिडेट को शक है तो वह रिजल्ट घोषित होने के 7 दिन के भीतर शिकायत कर सकता है. (नीचे भी पढ़े)
शिकायत के बाद ईवीएम बनाने वाली कंपनी के इंजीनियर्स इसकी जांच करेंगे. किसी भी लोकसभा क्षेत्र में शामिल विधानसभा क्षेत्रवार की टोटल ईवीएम में से 5 फीसदी मशीनों की जांच हो सकेगी. इन 5 फीसदी ईवीएम को शिकायत करने वाला प्रत्याशी या उसका प्रतिनिधि चुनेगा.
इस जांच का खर्च कैंडिडेट को ही उठाना होगा. खर्च कितना आएगा, इसका फैसले में जिक्र नहीं है. लेकिन जांच पूरी होने के बाद चुनाव आयोग बताएगा कि जांच में कुल कितना खर्च आया. आयोग इसे नोटिफाई करके बताएगा.उनकी सभी याचिकाएं खारिज हो गईं, लेकिन ईवीएम की जांच के आदेश से थोड़ी राहत मिली.एडीआरके वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश दिए, जिसमें कैंडिडेट्स के लिए शिकायत और फिर जांच की बात भी है. इसके बाद सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं.