जमशेदपुर : जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित निर्मल भवन में रविवार को आयोजित कुड़मी समाज की बैठक में विवाद हो गया. इस दौरान थोड़ी देर के लिए गहमा- गहमी रही. दरअसल पश्चिम बंगाल में रेल रोको आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अजीत महतो ने बैठक में पहुंचते ही कुड़मी विकास मोर्चा के अध्यक्ष शीतल कोहदार का विरोध कर दिया. इस दौरान दोनों पक्षों के समर्थको के बीच थोड़ी देर के लिए बहस हो गई. अजीत महतो ने यह तक कह डाला कि बैठक में या तो वे रहेंगे या शीतल कोहदार. अजीत महतो ने आरोप लगाया कि शीतल कोहदार ने उनका हर जगह विरोध किया है. मीटिंग की तारीख तक बदल दी गई. झारखंड में भी रेल रोको आंदोलन किया जाना था, लेकिन झारखंड के सिर्फ नीमडीह में 3 घंटे के लिए रेल रोको आंदोलन हुआ. वहीं, इस मामले में शीतल कोहदार का कहना था कि अजीत महतो उनके अभिभावक की तरह हैं. हालांकि थोड़ी देर विवाद के बाद बैठक दोबारा से शुरू की गई. (नीचे भी पढ़ें)
बैठक में अनुसूचित जनजाति में शामिल होने की मांग को लेकर आंदोलन करने का खाका तैयार किया। बैठक में तय किया गया है कि 30 अक्टूबर को एक बड़ी बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में आंदोलन की पूरी रणनीति तय होगी। यही नहीं रेल रोको आंदोलन के नेतृत्व कर्ताओं को सम्मानित भी किया गया। कुड़मी समाज के हरमोहन महतो ने कहा कि झारखंड में 24% कुड़मी बिरादरी है। इसमें से 10% बिरादरी भी सड़क पर उतर आएगी तो दिल्ली और मुंबई की बत्ती गुल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि झारखंड खनिज संपदा से समृद्ध राज्य है। उन्होंने कहा कि सरकार बिरादरी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करें। इसके लिए उनके पास काफी दस्तावेज हैं। 1931 तक कुड़मी बिरादरी अनुसूचित जनजाति में शामिल थी। (नीचे भी पढ़ें)
कुड़मी समाज के नेताओं ने कहा कि वह अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा सत्र में कुड़मी वोटों से जीतने वाले सांसद इस मुद्दे को उठाएं और सरकार पर दबाव डालें कि वह कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति में शामिल करें। अगर कोई सांसद ऐसा नहीं करेगा तो कुड़मी समाज ऐसे सांसदों को आगामी लोकसभा चुनाव में वोट नहीं करेगा। उन्होंने बताया कि कुड़मी समाज की बंगाली यूनिट और झारखंड यूनिट में आंदोलन की तारीख को लेकर मतभेद था। लेकिन बाद में सब ने इसे हल कर लिया था। रेल रोको आंदोलन के नायक अजीत प्रसाद महतो और कुड़मी विकास मोर्चा के झारखंड के अध्यक्ष शीतल कोहदार के बीच के मतभेद हुआ था। उन्होंने कहा कि सालखन मुर्मू कह रहे हैं कि कुड़मी नकली आदिवासी हैं। ऐसा नहीं है। कुड़मी असली आदिवासी हैं। सालखान मुर्मू नकली आदिवासी हैं। वह ओडिशा से आए हैं।