जमशेदपुर : आक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन आफ झारखंड (ओशाज) ने बुधवार को सिलिकोसिस पीड़ितों की समस्याओं को लेकर उपायुक्त कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया. इस दौरान ओशाज की ओर से उपायुक्त कार्यालय में मुख्यमंत्री के नाम एक 15 सूत्री मांग पत्र सौंपा गया. इसके माध्यम से कहा गया है कि श्रम कानूनों का संसोधन कर तैयार किया गया चार श्रम कोड को अविलम्ब निरस्त किया जाय. काम का समय 8 घंटा से बढ़ाकर 12 घंटा करने संबंधी कानूनी प्रावधान को तत्काल निरस्त कर पूर्ववत 8 घंटा किया जाये. कारखाना एवं खदानों में मज़दूरों की पेशागत सुरक्षा एवं स्वास्थ एवं सामाजिक सुनिशिचत करने के लिए फैक्ट्रीज एक्ट 1948 ईएसआई एक्ट 1948, माइनिंग एक्ट 1952 एवं एम्प्लाइज कंपनसेशन एक्ट 1923 को लागू किया जाय. सरकार एवं ओशाज संस्था की ओर से चिन्हित किये गए सभी सिलिकोसिस आक्रान्त एवं मृतक के परिवारों को हरियाणा सरकार की तर्ज पर सिलिकोसिस से मृत व्यक्ति के आश्रितों को 6 लाख रुपया आर्थिक सहायता राशि एवं सिलिकोसिस आक्रांत मज़दूर के लिए पेंशन राशि 6000 रुपया प्रति माह एवं मरणोपरांत उनके आश्रितों के लिए 5500 रुपया, लड़की की शादी के लिए 75 हजार रुपये, लड़का के लिए 35 हजार रुपया एवं शिक्षण खर्च क्लास 6 से प्रति वर्ष 6000 रुपये, 8000 रुपये एवं 10 हजार रुपये के हिसाब से दिया जाय. (नीचे भी पढ़ें और वीडियो देखें)
मांग पत्र में कहा गया है कि चूंकि सिलिकोसिस एक लाइलाज घातक बीमारी है अतः सिलिकोसिस चिन्हितकरण एवं सिलिकोसिस आक्रान्त मज़दूरों की आयु बढ़ाने के लिए झारखण्ड के सभी ब्लॉक हॉस्पिटलों का मानोन्नयन 300 मिली एम्पियर का एक्स-रे मशीन, लंग फंक्शन टेस्ट मशीन, पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था हो ताकि सदर या जिला अस्पताल में गरीब मज़दूरों को दौड़ भाग करना न पड़े. पीड़ित परिवारों के सक्षम युवा एवं युवतियों का सरकारी नौकरी में अग्राधिकार, आवासीय सुविधा का लाभ, स्कूल कॉलेज में पढ़ रहे सिलिकोसिस प्रभावित परिवारों के बच्चे तथा बच्चियों का निःशुल्क शिक्षा पाने में अग्राधिकार दिया जाए. सिलिकोसिस आक्रांत व्यक्ति द्वारा चिन्हितकरन के आधार पर कारखाना मालिकों से कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 के तहत मुआवजा प्रदान कराया जाए. ऐसे कई मृतक हैं, जो उन्हीं मृतक मजदूरों के साथ काम किया करते थे, जिनके आश्रितों को आर्थिक सहायता राशि मिली है, जिनके पास कोई ऐसी जांच रिपोर्ट नहीं है जिससे सिलिकोसिस होने की पुष्टि हो. चूंकि मृतक मजदूरों का ऐसे समूह जो एक तरह के पेशे में जुड़े थे एवं एक तरह की बीमारी का लक्षण उनमें पाया गया था, लेकिन उन्हें मरने के बाद दाह संस्कार के समय जला दिया गया था और जो एक ही एपिडेमीओलॉजिकल कोहॉर्ट से आते मृतक मजदूरों के आश्रितों को भी आर्थिक सहायता राशि प्रदान की जाए. (नीचे भी पढ़े)
मांग पत्र में कहा गया है कि टीबी उन्मूलन कार्य योजना की तर्ज पर सिलिकोसिस सह निउमोकोनिओसिस का सभी प्रकार फेफड़े की बीमारियों का चिन्हितकरण एवं उन्मूलन कार्य योजना तैयार किया जाए. सभी कारखानों एवं खदानों में श्रम कानून सख्ती से लागू किया जाए. सभी सिलिका धूल उत्सर्जनकारी इकाइयों में तकनीकी सयंत्र के सहारे धूल नियंत्रण को बाध्यतामूलक किया जाए. कार्यक्षेत्र (खदान और कारखाना) में पेशागत सुरक्षा एवं स्वास्थ संस्कार विकसित करने हेतु सभी हितधारोको में लगातार प्रचार प्रसार किया जाए. एमजीएम कॉलेज अस्पातल में चेस्ट मेडिसिन एवं पेशागत बीमारियों का विभाग व जांच केंद्र (ऑक्यूपेशनल डिजीज डिटेक्शन सेंटर) खोला जाय जहां स्वांस संबंधित बीमारियों की जांच हो सके. रेडिओलॉजी विभाग में सिलिकोसिस सहित अन्य पेशागत फेफड़े की बीमारियों की आसान जांच हेतु चेस्ट एक्स-रे प्लेट का आईएलओ रेटिंग यानी वर्गीकरण की व्यवस्था की जाय। हिपोक्रेटिक के नाम से शपथ लेकर कार्यरत चिकित्सक को उसी अनुरूप कार्य करने दिया जाय, ताकि किसी भी प्रकार के दबाव में चिकित्सक अनैतिक कार्य निर्वाह करने को बाध्य न हो. यह जानकारी ओशाज के महासचिव समित कुमार कार ने दी.