शार्प भारत डेस्क : दिनभर के काम के बाद आज जब हम घर पहुंचते है तो आराम के लिए क्या करते है. सबसे ज्यादा और सामान्य उत्तर जो हमें मिलेंगे, वह है बिस्तर या सोफे पर लेटकर टीवी और मोबाइल देखना. इस दौरान लगभग सभी के कमरों की लाइट बंद ही होती हैं. अगर आप भी ऐसा करते है, तो सावधान हो जाइए. इससे आपकी आंखें हमेंशा के लिए खराब हो सकती है. वो सारी रंग बिरंगी दुनिया जिसे हम प्रकृति की सबसे खूबसूरत तोहफे यानि आंखों से देखते है, वह सब समाप्त हो जाएगा. देर रात तक मोबाइल स्क्रीन को घूरते रहना और सुबह उठते ही मोबाइल की तरफ लपकना हमारी आदत बन गई है. ऐसा करने से हमें मैक्यूलर डिजनरेशन जैसी गंभीर समस्या की सामना करना पड़ सकता है. (नीचे भी पढ़ें)
मैक्यूला रेटिना का एक पार्ट होता है, जिसकी सहायता से हम दूर की चीजों को देख पाते है. मैक्यूलर में समस्या आने से आंखों की रोशनी का हमेंशा के लिए जाने का खतरा रहता है और इसे ठीक करना भी लगभग नामुमकिन है. मैक्यूलर को सबसे ज्यादा हानि स्कीन लाईट से पहुंचती है. साथ ही लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से हमारी ब्लिंकिंग रेट (पलक झपकाना) कम हो जाती है. जिसके कारण हमारी आंखों पर नीली रोशनी का प्रभाव ज्यादा पड़ता है. एक सामान्य इंसान एक मिनट में 12-14 बार अपनी पलक झपकाता है, वही स्क्रीन टाइम बढ़ने से यह घटकर 6-7 रह जाती है. मैक्यूलर के साथ साथ इससे आंखों में ड्राइनेस, जलन, और इंफेक्शन होने की संभावना भी बढ़ती हैं. (नीचे भी पढ़ें)
अब बात इससे बचाव की, जिससे आंखों को बचाया जा सकता है –
- अंधेरे में स्क्रीन से दूरी बनायें या स्क्रीन टाइन को कम से कम करने का प्रयास करे. अगर फिर भी संभव न हो तो स्क्रीन देखते समय कमरे की लाइट को जला कर रखें.
- 20-20 का फॉर्मूला को अपनाने की कोशिश करे. यानि हर मिनट 20 मिनट स्क्रीन टाइम के बाद 20 सेकेंड का ब्रेक लें और अपनी आंखों को बंद कर ले. इससे काफी हद तक नुकसान को कम किया जा सकता है.
- नीली किरणों से बचाने वाले चश्मे का उपयोग करे. साथ ही साथ अगर कोई परेशानी हो तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिले.
- एक हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाएं और खाली समय में मोबाइक का इस्तेमाल न करें.
- प्रकृति से जुड़ने का बहाना खोजें और जब भी संभव हो आसपास के पार्क में घूमने जरूर जाये.