जमशेदपुर : जमशेदपुर के टाटा मोटर्स प्लांट के कैंटीन कर्मचारियों को हटाये जाने के मामले में मंगलवार 12 जनवरी को झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. टेल्को कैंटीन इंम्प्लाइज यूनियन बनाम स्टेट ऑफ झारखंड के रिट पिटीशन नंबर 3420/2009 की सुनवाई झारखंड उच्च न्यायालय में न्यायाधीश डॉ एसएन पाठक की बेंच में हुई. इस सुनवाई में टाटा मोटर्स कैंटीन के मजदूरों के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव और विकास सिंह ने अदालत को बताया कि टाटा मोटर्स के कैंटीन में 1970 से 400 मजदूर स्थायी रूप से काम करते थे, जिनके साथ कई बार त्रिपक्षीय वार्ता हुई, जिसके तहत टाटा मोटर्स इन मजदूरों को वेतन भुगतान करती थी, लेकिन टाटा मोटर्स खुद को इन मजदूरों का नियोक्ता मामने से इंकार करती रही थी. मजदूरों की मांग को कुचलने के लिए टाटा मोटर्स ने इन कर्मचारियों को 1986 में गैरवाजिब तरीके से काम से हटा दिया. उन्हें कोई मुआवजा भी नहीं दिया. अधिवक्ताओं ने अदालत को आगे बताया कि इन कर्मचारियों ने पहले डीएलसी के यहाँ इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट खड़ा किया. डीएलसी ने मामला लेबर कमिश्नर को भेजा. लेबर कमिश्नर ने उक्त मामले को यह कहकर खारिज कर दिया था कि वह इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट का मामला नहीं है. इसके बाद मजदूर एकीकृत बिहार के वक्त संचालित पटना उच्च न्यायालय में गये और पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार को इस मामले को इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल में भेजने का आदेश दिया. उक्त आदेश के बाद बिहार सरकार ने उसे इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल को 1993 में रेफर किया. इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल ने लंबे समय तक कोई भी आदेश पारित नहीं किया. इसके बाद झारखंड सरकार ने 2005 में राज्यपाल के हस्ताक्षर से एक नोटिफिकेशन द्वारा इस मामले को छः महीने में सुनवाई समाप्त करने को कहा पर इस पर भी इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल ने कोई ध्यान नहीं दिया. अधिवक्ताओं ने आगे बताया कि इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल में सुनवाई में हो रही विलंब को देखते हुए यह रिट पिटीशन 2009 में दायर किया गया था जिसकी सुनवाई भी लंबित रही. अधिवक्ताओं ने इसके बाद अदालत से यह आग्रह किया कि चूंकि इस मामले में बहुत विलंब हो चुका है और लगभग 10 फीसदी मजदूर इस दुनिया में नहीं रहे और बाकि सभी रिटायरमेंट की उम्रसीमा भी पार कर चुके हैं तो ऐसी स्थिति में इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल को यह निर्देश जारी किया जाये कि वह लंबित मामले की दो महीने की भीतर सुनवाई कर आदेश पारित करे. टाटा मोटर्स के अधिवक्ताओं ने इस बात पर आपत्ति व्यक्त की कि इस मामले में टाटा मोटर्स को पार्टी नहीं बनाया गया है. इस पर अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने प्रतिक्रिया दी कि अगर टाटा मोटर्स खुद को इन मजदूरों का नियोक्ता मानती है तो उसे पार्टी बनाया जाये और तब इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल को निर्देश देने की जरूरत नहीं है. इस पर टाटा मोटर्स के अधिवक्ता पीछे हट गये. दोनों पक्षों को सविस्तार सुनने के उपरांत अदालत ने इंडस्ट्रियल ट्राईब्यूनल को निर्देश जारी किया कि वह लंबित मामले की सुनवाई छः महीने में पूरी कर उचित आदेश पारित करे. इस आदेश के साथ ही अदालत ने उक्त रिट पिटीशन का निबटारा कर दिया.