हाल के दिनों में हुई घटनाक्रम :
केस 1-टाटा वर्कर्स यूनियन में वेज रिवीजन समझौता को लेकर काफी कमेटी मेंबरों ने संविधान के मुताबिक, मजदूरों की आवाज को उठाना चाहते थे, जिसके लिए उन लोगों ने रिक्वीजिशन मीटिंग का आवेदन दिया था, लेकिन यूनियन में कोई रिक्वीजिशन मीटिंग नहीं हुई और न ही कमेटी मेंबर या मजदूर क्या चाहते है, इसको सुना गया और एकतरफा वेज रिवीजन समझौता कर लिया गया और लोगों में अब तक इसको लेकर नाराजगी है. खास तौर पर एनएस ग्रेड में सबसे ज्यादा नाराजगी है.
केस 2-टाटा वर्कर्स यूनियन के कमेटी मीटिंग बुलायी गयी. कमेटी मेंबरों ने कई सारे सवाल दिये. 25 से ज्यादा लोगों ने सवाल उठाने की इजाजत मांगी. यूनियन का संविधान कहता है कि अगर कोई कमेटी मीटिंग के पहले सवाल उठाने की इजाजत मांगें तो उसको इजाजत दे दिया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया और अंतत: कमेटी मीटिंग में माइक को बंद कर अध्यक्ष बाहर निकल गये.
केस 3-टाटा वर्कर्स यूनियन के कमेटी मीटिंग के बाद सीआरएम के कमेटी मेंबर एके गुप्ता ने हस्ताक्षर अभियान चलाया. इस हस्ताक्षर अभियान में 50 से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर कर दिये थे, लेकिन यूनियन की ओर से मैनेजमेंट के साथ मिलकर ऐसा दबाव बनाया गया कि बेचारे नौकरी करने वाले कमेटी मेंबर ही चुप हो गये और कई लोगों ने अपना नाम कटवा दिया.
केस 4-टाटा वर्कर्स यूनियन के कमेटी मेंबर सुनील दास ने कमेटी मेंबर के पद से ही इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफे की खबर आते ही सनसनी फैल गयी. अध्यक्ष आर रवि प्रसाद और उनकी टीम सुनील दास के पीछे पड़ गयी. इसके बाद क्या था, सुनील दास ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया जबकि सुनील दास ने इस्तीफे में वजह घटिया वेज रिवीजन और मजदूरों को जवाब नहीं दे पाने की स्थिति बतायी थी, लेकिन नौकरी करने वाले कमेटी मेंबर को हड़का दिया गया और उनको भी चुप रहने की हिदायत दे दी गयी, जिसके बाद उन्होंने भी अपना इस्तीफा वापस ले लिया.
जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन जमशेदपुर की सबसे पुरानी और देश की बड़ी यूनियनों में से एक है. लेकिन हाल के दिनों में यहां लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश हो रही है. यूनियन में कमेटी मेंबरों और आम मजदूरों की आवाजों को दबाने की कोशिश हो रही है. वैसे साइंस कहता है, जिसको भी ज्यादा दबाओगे, वह उतनी ही ज्यादा तेजी से बाहर आयेगा यानी विस्फोट का शक्ल अख्तियार कर लेगा. ऐसी ही स्थिति टाटा वर्कर्स यूनियन में फिर से नहीं हो जाये, इसका डर बना हुआ है. वैसे अध्यक्ष आर रवि प्रसाद चाहते है कि यह अंतिम पाली (रिटायरमेंट के पहले की) है और अंतिम पाली में वह सारा कुछ कर लेंगे, जो मन करता है और अपना फायदा से ऊपर कुछ भी नहीं होगा. यहीं वजह है कि अध्यक्ष आर रवि प्रसाद और उनके मुख्य सिपाहसलार उपाध्यक्ष शहनवाज आलम के खिलाफ काफी गुस्सा देखा जा रहा है और लोग कभी इस्तीफा देते है, कभी हस्ताक्षर अभियान चलाते है और कभी कमेटी मीटिंग में सवाल उठाने के लिए आवाज उठाते है, लेकिन हर बार उनकी आवाज दबा दी जाती है, नतीजतन यूनियन में मजदूरों की उठने वाली आवाज एक बार फिर से कुंद कर दी जाती है, जो आने वाले दिनों के लिए यूनियन के लिए घातक है. मजदूरों और कमेटी मेंबरों का विश्वास उठ जायेगा. लोग समानांतर यूनियन बनाने की राह पर निकल पड़ेंगे और नतीजा यह होगा कि कंपनी अशांत होगी और कंपनी से पूरे देश का नुकसान हो जायेगा, ऐसी स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि मजदूरों और कमेटी मेंबरों की आवाज को उठाने दी जाये. अगर आवाज उठती है तो उस आवाज में मांग क्या हो रही है और सामर्थ्य और हालात के अनुसार फैसला लेकर परेशानियों का हल निकाला जाना चाहिए.