जमशेदपुर : कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती के अवसर पर वीमेंस कॉलेज में राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का केन्द्रीय विषय था-प्रेमचंद की विरासत। ई संगोष्ठी की मुख्य आयोजक केयू की पूर्व कुलपति सह वीमेंस कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर शुक्ला महांती ने स्वागत सह उद्घाटन वक्तव्य देते हुए कहा कि प्रेमचंद की सभी रचनाओं का अनुवाद केवल अंग्रेजी में नहीं बल्कि सभी भारतीय, क्षेत्रीय व जनजातीय भाषाओं में भी होना चाहिए, तभी उनकी प्रासंगिकता है। प्रेमचंद की कथा भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह आम और खास दोनों तरह के पाठकों से सहज जुड़ जाती है। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता रामगढ़ कॉलेज, रामगढ़ के प्राचार्य डॉ. मिथिलेश ने मुख्य विषय पर बोलते हुए कहा कि प्रेमचंद ने अपनी एक कहानी में लिखा था कि क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करोगे। इस एकमात्र कथन के आलोक में हम अपने समय को देखें हमें पता चलेगा कि हमारा समाज किस तरह से समझौतापरस्त, लिजलिजा और रीढ़ विहीन हो गया है। व्यक्ति इतना आत्मकुंठित हो गया है कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए वह न सत्य बोल रहा है ना सत्य के साथ खड़ा होना चाह रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कोई भी बड़ा रचनाकार किसी एक भाषा या किसी एक देश का नहीं होता बल्कि वह समग्र मनुष्यता का रचनाकार होता है। प्रेमचंद हिंदी के हैं लेकिन वह भारतीय भाषाओं के भी हैं और दुनिया भर की भाषाओं के लिए भी वे उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उनकी विरासत को ठीक से समझना है तो हमें यह समझना होगा कि प्रेमचंद के सरोकार क्या थे। किसानों, मजदूरों, गरीबों, उत्पीड़ितों, स्त्रियों, दलितों की बातें उन्होंने उठाई। अपनी रचनाओं में वो सारी बातें पहले से हैं जो आज उत्तर आधुनिकता के दौर में विमर्शों के रूप में दिखाये जा रहे हैं। उनका लेखन जितना व्यापक है उतना ही गहरा है। संगोष्ठी के संयोजक हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने विषय प्रवेश कराया। संचालन हिंदी विभाग की अतिथि शिक्षिका आयशा ने और धन्यवादज्ञापन दिया डॉ. नूपुर अन्विता मिंज ने किया। तकनीकी सहयोग ज्योतिप्रकाश महांती, के प्रभाकर राव व निधि कुमारी ने किया। इस अवसर पर ‘महामारी’ विषय पर केन्द्रित लघुकथा लेखन प्रतियोगिता परिणाम इस प्रकार है-
प्रथम स्थान-
कविता दास (पीएचडी शोध छात्रा- हिन्दी)
प्रियंका महतो (एमए हिन्दी, सेमेस्टर 4)
द्वितीय स्थान-
प्रिया सौरव (एमए-हिन्दी सेमेस्टर 2)
तृतीय स्थान-
सुमन कुमारी मिश्रा (एमए, हिन्दी, सेमेस्टर 2)
प्रियंका सिंह (पीएचडी शोध छात्रा- हिन्दी)
लघुकथा लेखन प्रतियोगिता के निर्णायक का दायित्व डॉ. नूपुर अन्विता मिंज, डॉ. भारती कुमारी और आयशा ने निभाया।