जमशेदपुर : झारखंड में माइंस के चालू करने को लेकर कानूनों में संशोधन होगा. इसके बदलावों को लेकर राज्य सरकार गंभीरता से विचार कर रही है ताकि आसानी से खदानों के क्लियरेंस मिल सके. यह जानकारी झारखंड के खान सचिव के श्रीनिवासन ने दी. श्री श्रीनिवासन मंगलवार को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) की ओर से आयोजित दूसरे सीआइआइ झारखंड माइनिंग कांक्लेव के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. सीआइआइ की ओर से आयोजित इस कांक्लेव में श्रीनिवासन ने कहा कि स्थायी विकास और माइनिंग के लिए तकनीक पर फोकस करने की जरूरत है. गैर ऊर्जा श्रोतों को विकसित करने की दिशा में भी काम करने की जरूरत है. खान सचिव ने कहा कि खनिज संपदा झारखंड में भरा हुआ है, लेकिन अधिकांश जंगलों में है, इस कारण पर्यावरणीय स्वीकृति और वन विभाग के क्लियरेंस मिलने में दिक्कत होती है. 60 फीसदी माइंस जंगलों में ही है. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार क्लियरेंस की प्रक्रिया में जरूरी बदलाव करने जा रही है, जिसको लेकर विचार किया जा रहा है.
भारत सरकार के खनन मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार आलोक चंद्र भी इस कांक्लेव में जुड़े थे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि झारखंड में कोयला, आयरन ओर, लाइम स्टोन, कॉपर से भरपूर संसाधनों वाला प्रदेश है. झारखंड पूरे देश के 40 फीसदी खनिज का स्वामित्व अपने पास रखा हुआ है. यहां रॉक फास्फैट, एपेटाइट, कोयला, आयरन ओर, कॉपर ओर, सिलवर समेत तमाम खनिज संपदा उपलब्ध है. इस तरह के राज्यों में खनिज आधारित उद्योगों की स्थापना करने की जरूरत है और यहां निवेशकों को आगे लाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खनिज अनवेषण नीति लायी गयी है ताकि निजी कंपनियां माइनिंग के क्षेत्र में आगे आये. इस दिशा में भारत सरकार और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा ताकि यहां संसाधनों को बढ़ाने, रेलवे का नेटवर्क बिछाने में भी मदद मिल सके.
जहां तक खनन को लेकर वन विभाग के क्लियरेंस का सवाल है तो सरकारों के स्तर पर इसमें बदलाव संभव है और नये बदलावों के साथ नये रोजगार भी सृजित किये जा सकते है और माइनिंग के क्षेत्र को और आगे ले जाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि देश को माइनिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने वाले झारखंड की भूमिका काफी अहम हो चुकी है, ऐसे में भारतीय उद्योग और आर्थिक हालात में सुधार के लिए जरूरी है कि माइनिंग के क्षेत्र में बदलाव लाया जाये और इसके संवर्धन को लेकर एक कार्य योजना तैयार की जाये ताकि देश के आर्थिक विकास को और बढ़ावा मिल सके. उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत योजना के जरिये भी माइनिंग सेक्टर को भी आगे ले जाया जा सकता है. कांक्लेव को टाटा स्टील के वीपी सीएस सह सीआइआइ झारखंड स्टेट काउंसिल के चेयरमैन चाणक्य चौधरी ने भी संबोधित किया. इस मौके पर एनटीपीसी के हेड माइनिंग सरुपुता मिश्रा, टाटा स्टील के चीफ रेगुलेटरी अफेयर्स पंकज के सतीजा, सेंट्रल माइन प्लानिंग डायरेक्टर रवींद्र नाथ झा, सीआइआइ झारखंड माइनिंग पैनल के संयोजक सोमेश विश्वास, मेकॉन के निदेशक एके अग्रवाल, जेएसडब्ल्यू स्टीर के एक्जीक्यूटिव वीपी पीके मुरुगन, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक अरुण कुमार शर्मा, यूसिल के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ एके षाड़ंगी, टाटा हिताची के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट हेमंत माथुर, थायसनक्रप इंडस्ट्रीज के माइनिंग डायरेक्टर इंद्रणील राय सममेत अन्य लोग मौजूद थे.