रांची : झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी कैबिनेट द्वारा ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी), जिसको जनजातीय सलाकार परिषद कहा जाता है, के गठन को लेकर किये गये बदलावों को लेकर राजनीतिक बवाल थमता नजर नहीं आ रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को 3 बजे से मीटिंग बुलायी है, उससे ठीक पहले झारखंड भाजपा के प्रदेश स्तर के नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई. इस बैठक के बाद भाजपा के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, भाजपा के विधायक सह पूर्व मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा और विधायक कोचे मुंडा ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित की. इन तीनों विधायक को ही सरकार ने ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल में नामित सदस्य मनोनित किया है. इन लोगों ने संवाददाता सम्मेलन कर कहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने असंवैधानिक तौर पर काउंसिल के गठन को लेकर संशोधन कर दिया है और राज्यपाल की भूमिका को ही समाप्त कर दिया है. इसके अलावा मुख्यमंत्री के पद को चेयरमैन पर आसीन करने का प्रावधान कर दिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अभी आदिवासी है, लेकिन यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में गैर आदिवासी भी मुख्यमंत्री बन जाये. ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि यह प्रावधान तय किया जाता कि आदिवासी ही टीएसी का चेयरमैन होगा तो उसका जरूर स्वरागत किया जाता. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि जनजातीय लोगों की भावनाओं के साथ यह मजाक किया गया है, जिसका वे लोग विरोध करते है. जनजातीय समुदाय से एक महिला को नामित सदस्य के रुप में रखा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. सिर्फ विधायक के तौर पर सीता सोरेन का नाम दिया गया बल्कि मनोनयन में एक जनजातीय महिला को नामित सदस्य के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए था. प्रीमीटिव ट्राइब्स को भी जगह नहीं दी गयी है. यह गलत परिपाटी शुरू कर दिया गया है, जिस कारण उन लोगों ने तय किया है कि जब तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी कैबिनेट इस तरह के फैसले को वापस नहीं लेती है, तब तक वे लोग जनजातीय परिषद की बैठक में शामिल नहीं होंगे और वे लोग तब तक मीटिंग में शामिल होंगे, जब तक इसको बदल नहीं दिया जाता है.