जमशेदपुर : कार्तिक मास शुक्लपक्ष की नवमी तिथि यानी आंवला नवमी कल (23 नवंबर) को है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. इस दिन दान, जप व तप सभी अक्षय होकर मिलते हैं अर्थात इनका कभी क्षय नहीं होता है. ऐसी मान्यता है कि आंवला नवमी स्वयं सिद्ध मुहूर्त है. अक्षय नवमी की पूजा संतान प्राप्ति एवं सुख, समृद्धि एवं कई जन्मों तक पुण्य क्षय न होने की कामना से की जाती है. इस दिन लोग परिवार सहित आंवला के पेड़ के नीचे भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं. इसके बाद ब्राह्मणों को द्रव्य, अन्न एवं अन्य वस्तुओं का दान करते हैं. अक्षय नवमी से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं. (आगे की खबर नीचे पढ़ें)
मान्यता है कि इस दिन महर्षि च्यवन ने आंवले का सेवन किया था, जिससे उन्हें फिर से यौवन मिला था, अत: इस दिन आंवला खाना चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु का वास आंवले में होता है, इसलिए इस पेड़ की पूजा से समृद्धि बढ़ती है और दरिद्रता नहीं आती. कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने पर बीमारियों और पापों से छुटकारा मिलता है. अक्षय नवमी पर मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया था. मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी. इस वजह से अक्षय नवमी पर लाखों भक्त मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं. (आगे की खबर नीचे पढ़ें)
पंडितों व विद्वानों की मानें, तो पद्म पुराण में बताया गया है कि भगवान शिव ने कार्तिकेय को कहा है आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है. यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण से ही गोदान के बराबर फल मिलता है. आंवले के पेड़ के नीचे श्रीहरि विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है. अक्षय नवमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. पूजा के बाद इस पेड़ की छाया में बैठकर खाना खाया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से हर तरह के पाप और बीमारियां दूर होती हैं.