अन्नी अमृता/नोवामुंडी : कार्यक्रम की भीड़ में कुछ चेहरे ऐसे नजर आते हैं जो न सिर्फ दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं बल्कि वे दूसरों की जिंदगी सशक्त बनाने में भी सक्रिय रहते हैं.यह सब देखकर जिंदगी पर भरोसा बढ जाता है. टाटा स्टील के नोवामुंडा रन-ए-थॉन के चौथे संस्करण के तहत स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में आयोजित 10k, 7k, 5k और 2k दौड़ श्रेणियों में 2k श्रेणी दिव्यांगों के लिए थी. शार्प भारत की टीम का ध्यान इसमें भाग ले रही मंजू शर्मा की तरफ गया जिनका उत्साह देखते ही बन रहा था. उनकी नजर में ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेना ही बड़ी बात है, जीत और हार महत्वपूर्ण नहीं. मंजू ने शार्प भारत से बातचीत करते हुए कहा कि आम तौर पर दिव्यांगों को एक्सपोजर नहीं मिलता है इसलिए टाटा स्टील के इस रन-ए-थॉन में दिव्यांगों को मौका मिलना दर असल टाटा के उसी कल्चर का हिस्सा है जिसके तहत दिव्यांगों को पूरा सपोर्ट और अवसर दिए जाते हैं. (नीचे भी पढ़ें)
कौन हैं मंजू शर्मा
मंजू शर्मा दिव्यांगों के लिए कार्यरत बंगलुरु की एनजीओ ENABLE INDIA की कर्मचारी हैं और इस वक्त टाटा स्टील फाउंडेशन के नोवामुंडी सबल सेंटर में दिव्यांगों के प्रशिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं. सेंटर में वे दृष्टिहीनों को कंप्यूटर ट्रेनिंग और अन्य दिव्यांगों को उनकी जरूरत के हिसाब से मोबिलिटी ट्रेनिंग देती हैं. दरअसल ENABLE INDIA टाटा स्टील फाउंडेशन की नॉलेज पार्टनर है और उसी के तहत मंजू शर्मा नोवामुंडी सबल सेंटर में कार्यरत हैं. मंजू ट्रेनिंग देने के साथ ही दिव्यांगजनों को मानसिक रूप से सशक्त बनाने और जीवन को सकारात्मक रूप में देखने के लिए प्रेरित करती हैं. मगर असली कहानी तो अभी बाकी है.मंजू ने जब शार्प भारत को अपनी कहानी सुनाई तब उनके प्रति आदर भाव और बढ़ गया. (नीचे भी पढ़ें)
कभी जेट एयर में बतौर एयर होस्टेस कार्यरत थी मंजू मगर 11 साल पहले…
11 साल पहले तक मंजू शर्मा एक सामान्य जीवन जी रही थीं. कोलकाता की रहनेवाली मंजू जेट एयरवेज में बतौर एयर होस्टेस कार्यरत थीं. लेकिन एक दिन वे एयरक्राफ्ट में ही गिर गईं और धीरे-धीरे उनके पैर की समस्या बढने लगी. आगे चलकर व्हील चेयर उनकी जिंदगी की हकीकत बन गईं.शुरुआती निराशा के बाद उन्होंने अपने परिवार के सहयोग से खुद को मजबूत किया और 2018में वे ENABLE INDIA एनजीओ से जुड़ गईं और फिर नोवामुंडी सबल सेंटर में एनजीओ की प्रतिनिधि के तौर पर दिव्यांगों को प्रशिक्षण देने के कार्य से जुड़ गईं.
बकौल मंजू-“”जीवन में कब क्या होगा कोई नहीं जानता.जीवन के कठिन समय में परिवार और दोस्त रुपी मजबूत सपोर्ट सिस्टम से असंभव भी संभव बन जाता है.”” मंजू को नोवामुंडी में अद्भुत शांति मिलती है. नोवामुंडी में टाटा स्टील फाउंडेशन के सबल सेंटर में दिव्यांगों को प्रशिक्षण देकर उनको सशक्त बनाने में संतोष महसूस होता है.ऐसे असली नायक/नायिका को शार्प भारत का सैल्यूट है.