रांची : झारखंड में भाजपा लगातार हारती दिख रही है. पार्टी में कुछ तो हो गया है, जिस कारण लगातार पार्टी को सारे उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ रहा है. पहले तो विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद दुमका और बेरमो के उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त मिली. इसके बाद अब जाकर मधुपुर विधानसभा उपचुनाव में एक बार फिर से भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा. मंत्री हाजी हुसैन अंसारी की मौत के बाद उनके बेटे को वहां की जनता ने चुनाव में जीता दिया जबकि वहां आजसू से भाजपा में लाकर गंगा नारायण सिंह को टिकट दिया गया था, जहां उनको हार का मुंह पार्टी को फिर से देखना पड़ा. भाजपा वहां अपने ही पार्टी के नेता राज पालिवार पर विश्वास नहीं जताया जबकि आजसू से प्रत्याशी को लाकर भाजपा ने टिकट दे दिया. हालांकि, राज पालिवार पुराने भाजपा के नेता है और भाजपा को वहां तीन बार से जीताते रहे थे. लेकिन इस बार उनका टिकट काटकर भाजपा ने आजसू के गंगा नारायण सिंह को ना सिर्फ पार्टी का टिकट दिया जबकि भाजपा पूरी तन्मयता से मेहनत भी की, लेकिन हार का ही मुंह देखना पड़ा. इन तीन उपचुनाव में लगातार होती हार और पहले के विधानसभा चुनाव में लगातार हो रही भाजपा की हार जरूर सोचने पर मजबूर कर दी है कि आखिर पार्टी को क्या फिर से सैनिटाइज करने की जरूरत है. क्या भाजपा अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर ही भरोसा नहीं कर रही है कि टेकओवर पर ज्यादा भरोसा कर रही है, जिस कारण झारखंड में लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है. हाल ही में भाजपा ने झाविमो का विलय भाजपा में कराया. इस विलय के साथ ही बाबूलाल मरांडी जैसे नेता को अपने सिर पर बैठा लिया. करीब 14 साल तक भाजपा को गाली देते रहने वाले बाबूलाल मरांडी को भाजपा में टिकट दे दिया गया और इतना तरजीह कि विपक्ष का नेता बना दिया. हालत यह हो गयी कि आज तक भाजपा विपक्ष का नेता नहीं दे पायी है और यह मामला कानूनी पचड़ा में फंसा हुआ है जबकि पहले ही भाजपा को वैकल्पिक नेता बना देना चाहिए था. भाजपा में बाहर से आये हुए नेताओं और कार्यकर्ताओं की बढ़ती पूछ उन कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ताओं को ठग देता है, जो अपने खून और पसीने (ब्लड एंड स्वेट) से भाजपा के झंडे ढोते रहते है, अपना जीवन तक न्योछावर कर देते है और बाहर से आया हुआ व्यक्ति नेता बन जाता है, भाजपा का कर्णधार बन जाता है और पुार्टी उनके भरोसे ही चलने लगती है. इन सारे हालातों के कारण ही भाजपा कहीं न कहीं पीछे जा रही है, जिस पर पार्टी को पुर्नविचार करने की जरूरत है. दूसरी ओर, हेमंत सोरेन नये नेता भी है और सधी हुई बातें ररखते है. यहीं वजह है कि वे लगातार अपने सधे हुए राजनीति से भाजपा को पछाड़ दे रहे है, जिसकी काट के लिए भाजपा को ऐसे ही नेता और कार्यकर्ता को लाने की जरूरत है.
jharkhand-by-election-madhupur-झारखंड में भाजपा दोराहे पर ? अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर ही बढ़ाना होगा भरोसा, बाहरियों को लाकर चुनाव लड़ाने और हारे हुए खिलाड़ियों पर दावं लगाना करना होगा बंद, फिर से भाजपा को नये सिरे से बदलाव की जरूरत, सधी हुई हेमंत एंड टीम की राजनीति के आगे तीन बार से परास्त हो जा रही भाजपा-समीक्षा रिपोर्ट-election-analysis
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